रचनात्मक अवरोध (writer’s block)

बाहर हल्की
पर मन में भारी बारिश हो रही है
कागज़ की नाव पर सवार शब्द
तेज़ी से बहे जा रहे हैं
मैं उन्हें बचाने के लिए
भाग रही हूँ छपाछप
नाव उफ़नती हुई नदी में उतर जाती है
और मुझे तैरना नहीं आता
अब केवल मस्तूल भर बचा है
न नाव, न शब्द
इंतजार करूंगी उनका
हैं तो अपने ही
इक न इक दिन लौट आयेंगे।

*****

– दिव्या माथुर

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