पिता हो तुम
गर्मी की दोपहर में जल कर जो साया दे वो दरख़्त हो
बच्चो की किताबों में जो अपना बचपन ढूंढे
वो उस्ताद हो, तुम पिता हो तुम
दुनिया से लड़ने का रगों में खून बन कर बहने का
ज़ज्बा तुम हो
अपने खिलौनों को हर वक़्त तराशने के लिए
हाथों में गीली मिट्टी लिए रहता है वो कुम्हार हो तुम
पिता हो तुम
अपने अधूरे खवाबों को पूरा जीने के लिए
ख़ुद की नींद को जो बाँध कर फैंक दे वो हौसला हो तुम
पिता हो तुम
खुद से भी ज्यादा ऊँचाई से देख पायें इस दुनिया को
इसलिए बच्चो को काँधों पर उठाये फिरते हो
आने वाले कल की नीव रखने वाले कारिंदे हो तुम
पिता हो तुम पिता हो
गर घर जन्नत है तो उसका आस्मां तुम हो
किसी भी खानदान की बुनियाद
सिर्फ तुम हो सिर्फ तुम
गर्मी की दोपहर में जल कर जो साया दे वो दरख़्त हो
बच्चो की किताबों में जो अपना बचपन ढूंढे वो उस्ताद हो तुम
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-पूनम चंद्रा ‘मनु’