1. सुविधापरस्त

ए.सी. वाली कार के भीतर बैठ

मुरझाया-सा मन लिए

जब चिलचिलाती धूप में

मुस्कुराते फूल को देखा

तो हैरत से भर गई मैं

कि कैसे इतनी सड़ी गरमी, धूल और ट्रैफिक की चिल्ल-पौं में भी

कोई इतना सुंदर दिख सकता है

और मुस्कुरा सकता है!

मेरे असमंजस को भाँप कर

तुरंत फूल ने कहा-

जैसे तुम हैरान हो मुझ पर

मैं भी प्रश्न करता हूँ हर दिन

तुम्हारे जैसे लोगों को देखकर जो

न जाने कैसे रह लेते हैं हमेशा दु:खी और चिड़चिड़े से

ये बंद ठंडी गाड़ियों में

सुविधाओं से सराबोर रहने वाले लोग

देखो, ज़रा खुद को!

एक अदने-से ट्रैफिक जाम में

तुम्हें हताश करने की ताकत है

मैं तो तेज़ धूप में और खिलूंगा अभी

क्योंकि मैं साथ निभा रहा हूँ

फुटपाथ पर सोई उस नन्ही बच्ची का

जो भोजन में दो बिस्किट खाकर सोई है अभी

और हर्षित है इसी बात से कि

उसके बोए पौधे में मैं खिल गया हूँ

***

2. पिनियाटा

आज बच्चे के जन्मदिन की पार्टी थी

साज-सज्जा, खेल-तमाशा, सब था

एक पिनियाटा भी था

पता नहीं, कैसा पिनियाटा था!

अपना काम ही नहीं जानता था

बिल्कुल आज की आधुनिक नारी-सा

सभी बच्चे उस पर डंडा मारते

पर वह टूटता ही नहीं

इतने डंडे पड़ने पर भी वह मज़बूत बना रहा

एकदम निर्भया-सा

पर उसका काम था—

पलायन करना, टूट जाना

इसीलिए उसे बरबस तोड़ डाला गया

और वह बिखर भी गया

बहुत-सी स्वाभिमानी स्त्रियों की तरह

और टूट गया कुछ मेरे आत्मविश्वास का अंश

उसी पिनियाटा की तरह

***

3. तुलना

बादलों को देखकर हमेशा ही अच्छा लगता है!

कभी रूई से लगते हैं

कभी बूढ़े बाबा की दाढ़ी जैसे

कभी गोल-मटोल बच्चे की तरह

तो कभी कल्पित जानवर से

मैं रोज़ उन्हें देखकर

कोई प्रतीक बना लेना चाहती हूँ,

उनकी तुलना किसी से करने की

कोशिश में निरंतर जुटी रहती हूँ

क्यों नहीं देख पाती

मैं बादल को ही बादल में

क्यों तलाशती रहती हूँ

किसी और को, किसी और चीज़ में!

कब आएगा अपनाना मुझे

हर चीज़ को उसके अपने रूप में

स्वीकारना सबको, वैसा का वैसा

बिना तुलना के, सहजता से!

***

4. त्योहार और बेटी

छुटपन से याद है

हर त्योहार पर माँ का पकवान बनाना

होली के दिन गुझिया

दीवाली पर खीर

नवरात्र पर हलवा

और आए दिन न जाने कितना कुछ

अब मेरी माँ निराश होती है

कहती है कि—

हिम्मत नहीं है उठने की

और कुछ उदास होती है

अपनी अशक्तता पे

पर, मैं उसे बार-बार कहती हूँ कि

कर लिया तूने आधे शतक से भी अधिक,

निराश न हो माँ!

देख, तेरा सिखाया अब कर रही हूँ मैं

तेरे ही कारण तो शक्ति है मुझमें

बस, अपने बच्चों के लिए नहीं

बनाती हूँ पकवान

करती हूँ साज-सजावट

क्योंकि याद करती हूँ तुझे

इन सब में

बिल्कुल वैसे ही जैसे तू करती थी

याद मेरी नानी को

जान गई हूँ कि-

त्योहार रंगों का हो या दीपों का

मनता है बस माँ से

मेरे हर दिन में बसी है मेरी माँ

वैसे ही जैसे बसी थीं नानी मेरी माँ में

***

5. दृष्टिकोण

आह! पतझड़ आया

पत्तों में डर भर आया

सूखेंगे, गिरेंगे, मिट्टी में मिलेंगे

लेकिन, वह मुस्काया

वह एक पत्ता जो था

कब से इंतज़ार में

इस पतझड़ के

वह आह्लादित हो, बोला

वाह! आखिर पतझड़ आया

अपने अनोखे रंगों से

लोगों को मोहने का मौसम आया

मुक्त पवन के संग

उड़ऩे का समय आया

वह बार-बार मुस्काया

उस पत्ते ने मुझे

जीने का ढंग सिखाया

वाह! पतझड़ आया

***

6. पार्टी-पार्टी

देश के लिए कुछ करना चाहते हो क्या?

देश का परचम विश्व में फैलाना चाहते हो क्या?

अरे छोड़ो! अरे छोड़ो!

देश का होकर क्या कर लोगे?

आओ, अपनी जेबें भर लो

अपना नाम बड़ा कर लो

आओ, पार्टी-पार्टी खेलो

कोई भी एक दल

जी हाँ, कोई भी एक दल

यानि राजनीतिक पार्टी चुन लो, बना लो

आओ, पार्टी-पार्टी खेलो

दूसरी पार्टी के सारे कार्यक्रमों पर रोक लगा दो

अच्छा-बुरा, सच्चा-झूठा, कड़वा-मीठा

इन सबकी चिंता मत करना

बस, अपनी-अपनी पार्टी चुन लो

फिर, विपक्ष से संग्राम कर लो

कौन सी पार्टी, कौन से मुद्दे?

कौन से आदर्श हैं हमको चुनने?

आदर्शों के बस नारे लगाओ

सच में, कोई आदर्श मत अपनाओ

हर बात का चिल्ला-चिल्ला कर मुद्दा बनाओ

ईर्ष्या, हिंसा, द्वेष बढ़ाने का

कोई भी तुम चांस ना छोड़ो

आओ, कोई पार्टी चुन लो

आओ अपनी जेबें भर लो

आओ पार्टी-पार्टी खेलो

ध्यान से एक बात और समझ लो

नहीं जमे जो कोई सिक्का

लगे तुम्हारी नहीं कोई सुनता

बिना शर्म के पार्टी बदल लो

या फिर, अपनी ही एक पार्टी बना लो

हाँ-हाँ!

बिना शर्म के पार्टी बदल लो

या फिर, अपनी ही एक पार्टी बना लो

चाहे तुम्हारा जो भी हो पेशा

बस, अपनी एक पार्टी चुन लो

देश को भूलो, मूल्यों को छोड़ो

आओ कोई पार्टी चुन लो

आओ अपनी जेबें भर लो

आओ पार्टी-पार्टी खेलो

***

7. बाएफोकल

सुना था-चालीस का होने पर

चश्मा बाएफोकल हो जाता है,

एक ही चश्मे में

दो अलग-अलग चश्में होते हैं

तब पता नहीं था कि इस उम्र में

दो अलग-अलग चीज़ें एक साथ दिखती हैं,

बच्चों की उम्र बढ़ती दिखती है

माता पिता की उम्र घटती दिखती है

पड़ोस की बच्ची

जो बिन बात गोदी चढ़ जाती थी

अब अकसर

दोस्तों में बिज़ी दिखती है

वो पड़ोस वाली चिरयुवा चाची

चाचा के बिसर जाने के बाद

अचानक वृद्ध दिखती हैं

एक ही दिन में बच्चों की जन्मदिन की पार्टियों में जाते हैं

तो वही अपने दोस्त की माँ की बरसी पर भी

जन्मदिन पर बीते लोगों को याद करते हैं

बरसी पर बच्चों के बढ़ते दोस्तों की चर्चा करते हैं

बड़ी अजीब सी उम्र है

केवल आँखें ही नहीं

रिश्ते, अहसास, अनुभव

सब बाएफोकल हो रहे हैं

बीस की उम्र में लगता था

हमने सब जान लिया,

चालीस में लगता है

अभी कुछ पता ही नहीं

सुना था चालीस का होने पर

चश्मा बाएफोकल हो जाता है

***

8. बोनज़ाई

वो अकसर बड़े प्रेम से

सहेजता था अपने बोनज़ाई पौधे को

बहुत ख्याल था उसे

उसके रूप और बनावट का

हर कुछ दिन में काट दिया करता था

आगे बढ़ती शाखा को

जब मैंने कहा था बढ़ने दो इसे

क्यों काट रहे हो बढ़ती डाली को?

बड़े रोब से बताया था उसने

कि बोनज़ाई की खूबसूरती

तभी तक रह सकती है

जब उसे लगातार बढ़ने से रोक दिया जाए

न जाने क्यों उस दिन से

बोनज़ाई में उसकी बेटी ही

नज़र आती है मुझे

***

9. चिड़िया फुर्र / विदेश में बेटियाँ

मेरे घर रोज़ आती है एक नन्ही सी चिड़िया

दाना चुगती है, थोड़ा वरांडे में मटकती है

किसी की आहट सुन  फुर्र से उड़ जाती है।

कई बार इंतज़ार करती हूँ उसका

पर वो मेरे रहते कभी आती ही नहीं

जब जब मैं छिप कर उसे देखती हूँ

मुग्ध होती हूँ उसपे

मुझे खुद में मेरी माँ नज़र आती है

वो भी तो देखती थी

अपनी दोनों चिड़ियों को ऐसे ही मुग्ध होकर

जो फुर्र से उड़ गईं हैं उसके आंगन से।

***

10. नयी नारी नयी कहानी

तुम मेरी आँखों में डूबने की बात करो या नहीं

कोई बात नहीं

पर अगर आँखों में छिपे भाव को पढ़ पाओ

तो कोई बात बने

तुम मेरे चेहरे को चाँद में ढ़ूँढ़ो या नहीं

कोई बात नहीं

अगर चेहरे पे आई शिकन को मिटा सको

तो कोई बात बने

तुम राहों में सितारों को बिछाओ या नहीं

कोई बात नहीं

अगर राह में मेरा हाथ थामे रखो

तो हमराह बने

मुझपे मर मिटने की बातें तुम न ही करो

यदि जीवन मेरे नाम लिखो

तो हमराह बने

बहुत सुन लीं चाँद सितारों और सोने चाँदी की बातें

अब कोई यथार्थ की बात करो

तो कोई बात बने

मैं अब इतनी भी अधीन नहीं कि

आसरे के लिए प्यार करूँ

मेरे साथ, मुझे बिना बदले जी सको

तो हमराह बने

अधिकार नहीं, प्यार करो तो कोई बात बने

स्वामी नहीं, साथी बनो तो कोई बात बने

तन नहीं, आत्मा को छू पाओ तो कोई बात बने

तो ही हमराह बनें, साथ रहें

तो कोई बात बने

*****

-आस्था नवल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »