नीला समंदर

हिलोरे लेता गहरा नीला समंदर
असीम रत्नराशि लिए समंदर
बिखरा हुआ है मेरे आगे
बहुत दूर तक जाता है
यह नीला समंदर!

ना जाने कहाँ से आता है!?
ना जाने कहाँ पर
जाता है!?
निरंतर हिलोरों में व्यस्त है यह समंदर
मगर, कुछ पहाड़ियों से घिरा है यह समंदर
लहरों को आंचल में समेटे यह समंदर
यूँ तो मौन है
लेकिन, धीमे से कुछ कहता है ये समंदर!
उठो, जागो
मुझसे कुछ सीखो, वत्सल
मुझ-सा बहना सीखो
लहरों को कलेजे में समेट कर भी
अठखेलियां लेना सीखो
मोतियों के हार पहने
मौज से निरंतर कर्मठता का पाठ सीखो
मेरे लहराते, असीम तन से समतल जीवन पथ का पाठ सीखो
विभाजित ही नहीं
जोड़ता भी मैं दुनिया को
स्वतंत्र हो कर भी बंधा हुआ हूँ !
सुख है बंधन में भी
जो प्रीत की डोर से बंधा हो!

***
-आराधना सदाशिवम

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