विदेश में मज़दूर

दोपहर की तपती धूप में मोटा पीला टोप (हेलमेट) चढ़ाएं
पसीने में लथपथ
तन्वंगा-सा
भू-खनन कार्य में तल्लीन मिलेगा एक मज़दूर!!

प्रकृति के प्रचंड कोप को निज शीश पर नि:शब्द झेलता मिलेगा एक मज़दूर!
आस-पास के वातानुकूलित घरों में चैन की वंशी बजाते
खनन-कार्य से उपजे शोर से कुपित लोगों का द्वेष सहता मिलेगा एक मज़दूर!
इन्ही लोगों की शंकाभरी दृष्टि का शिकार होता मिलेगा एक मज़दूर!

सुदूर रहते घर-वालों की याद में तड़प-तड़प कर भी रोज़ काम पर जाता मिलेगा एक मज़दूर!
रोज़ रात को कलेजे से फोन लगा कर सोता मिलेगा एक मज़दूर!
तनिक सी भूल से स्वयं की जान गवांता मिलेगा एक मज़दूर!
निज देश त्याग दूर देश में जीविका कमाने जाता मिलेगा एक मज़दूर!

रोटी-पानी, तन ढकने भर का खर्चा रख
सारे पैसे राह तकती माँ/पत्नी/बच्चों के लिए भेज बेचारगी भरी ज़िंदगी जीता मिलेगा एक मज़दूर!
स्वयं विदेश में रह कर भी अपने देश, अपनों की याद हर रोज़ संजो कर रहता मिलेगा एक मज़दूर!
अपनों को देख खुश हो लेता है मज़दूर!

स्वाभिमानी है
दया नहीं, जरा सी तवज्जो का है मोहताज मज़दूर!
अबकी जो तुम उसे देखो तो मुस्कुरा भर देना
पास की सीट पर बिठाना
धूप से साँवली काया से पनपती
पसीने की गंध से मुँह मत बिचकाना तुम!
आखिर, तुम्हारी चकाचौंध भरी दुनिया है बनाता यह मज़दूर!!!

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-आराधना सदाशिवम

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