सवाल
एक सवाल हमेशा
मेरे मन में घर कर रहा है
हैरान हूँ, परेशान हूँ
लोग कहते हैं, हम इंसान हैं
अगर हम इंसान है
सुनाई क्यों नहीं देती
चीखें हमें घायलों की
महसूस होता दर्द क्यों नहीं
वेदना देख किसी की
संवेदना जगती क्यों नहीं?
टूटती साँसों को देख
मानवता पिघलती क्यों नहीं
जब चलती हैं तोपें, गिरते हैं
बारूद के गोले
ढहाई जाती हैं बस्ती
निर्दोष जनता की
तब राजनेताओें के
घर क्यों सलामत रह जाते हैं?
दुधमुँहे शिशुओं से छूट जाती
माँ की कोख
सत्ताधारियों के बच्चे
क्यों पालने में लोरी सुनते हैं
जनता से बिना पूछे
युद्ध क्यों किये जाते हैं?
जनता तो सिर्फ़
रोटी कपड़ा और मकान
के लिए ही सारा जीवन
गँवाती है?
फिर इतनी सी बात
राजनेताओें को क्यों समझ
नहीं आती हैं?
जलती आशाएँ
दफ़्न होती उम्मीदें
राख बनते रिश्ते और
इनकी गंध
और सड़न हमें क्यों
सुंघाई नहीं देती
क्यों सुझाई नहीं देती
प्यार और समझौते का
ठंडा पानी
क्यों इंसान इन पर नहीं डालता
सुना और पढ़ा भी
सदा यही था
इंसान जानवरों से
बेहतर होता है
पर अब लगता है
जानवरों का काम
इंसान करने लगे है
एक दूसरे को काटने
लगे है।
यही एक सवाल हमेशा मेरे मन
में घर कर जाता है ,
और हमेशा निरुत्तर रह जाता है
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-ऋतु शर्मा