बचपन

ज़माना मुझे कुछ इस तरह
इस तरह जीना सीखा रहा है
बाज़ार में बचपन को बेच
भविष्य के सपने बुनना सीखा रहा है

गणित ज़िंदगी का
पाठशाला में नहीं
खुद दुनिया के बाज़ार
से सीख रहा हूँ

जहाँ हर चीज़ बिकाऊ है
हर इंसान की क़ीमत
उसकी हैसियत से
लगाईं जाती है

कोई रुपयों से तोला जाता है
तो कोई जज़्बातों से ख़रीदा जाता है
बचपन भी यहाँ
ज़रूरतों और मजबूरियों
के भाव, बेचा जाता है।

होगा जो नसीब अच्छा
बनूँगा मैं भी अगले जन्म में बच्चा
खेलूँगा खिलौने से मैं भी
जी भर के जी लूँगा
अपना बचपन मैं भी…

*****

-डॉ ऋतु शर्मा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »