वो दिया
वो दिया
जो जल कर रौशन करता है
तेल भी जलता है इसका बाती भी
और इसकी ऊपरी और भीतरी सतह भी
दिवाली की रात जब सितारे
इसकी लौ से अपनी चमक आँकते हैं
तब इसकेहौसले पर रश्क होता है उन्हें
हवा के तेज़ बहाव से ऐसे गले मिलती है इसकी रौशनी
जैसे
बरसों बाद मिले दोस्त
बहुत देर तक हाथ थामे रहते हैं
जो रौशन करने के लिए
धीरे धीरे जल कर मरने को तैयार हो
वो कहता है
इस बार घर की दहलीज़ पर तो सजाओगे ही मुझे
अपने ज़हन की मुंडेर पर भी रख देना
खुद में मुझको इतना रौशन करो कि
सामने खड़ा शक्श खुद सा नज़र आये
जब सब ही एक से हो जायेंगें
तब कहीं बनवास पर गए हुए
खुद के भीतर के राम को
अपनी रूह की अयोध्या में
वापिस आने से कौन रोक सकता है
वो दिया जो जल कर रौशन करता है
तेल भी जलता है इसकाबाती भी
और इसकी ऊपरी और भीतरी सतह भी
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-पूनम चंद्रा ‘मनु’