धूप की मछलियाँ
बनारस के घाटों पर
नयी करवटें बदलती ज़िंदगी
अंतिम यात्रा
एक बुलबुला फटता है
जिसमे जीवन कैद था।
बस यह तो बाहरी छिलका था जो गिर गया
बाहरी सतह टूट गयी
अंदर की तो फिर नयी यात्रा, नया चक्र और योनि
मिलन और विलय शुरू होता है
यही सृष्टि का सत्य है
जैसे जल किसी को रुका हुआ सा लगता है
दूसरा कहता है नहीं चल रहा है
तीसरा कोई बोल पड़ता है कि
देखो इस पानी में तो धूप की मछलियाँ तैर रही हैं
फिर कोई बोल उठता है
तैरती हुई तो एक ऊर्जा है
कर्मों के हिसाब से रूप बदलना ही उसका काम है
छलावा है या सत्य
ब्रह्मांड पर छोड़ दो….
शिव से पूछो कि सत्य क्या है?
उसके पहले अपने अन्तर्मन में एक अपना
शिवलिंग बनाना होगा।
जर्जर मन के लिए पुरातत्वेता बनना होगा
कर्मों के रसायन में घाट की मिट्टी मिला कर
शिव पर छोड़ना होगा
फिर जब तुम अपनी अंतिम यात्रा के लिए
बनारस का द्वारा लांघोगे
तभी मोक्ष को पाओगे
धूप की मछलियाँ भी साफ-साफ देख पाओगे।
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-अनिता कपूर