ज़िंदगी के पहलू
i)
ज़िंदगी एक बंद किताब है
जिसे खोलने की कोशिश तब सही है
जब इसके पन्नों को दोनों तरफ़ से पढा जाए
महत्त्वपूर्ण पहलुओं को रेखांकित किया जाए
और अतीत के अवांछित दृश्यों को खड्ड से मिटाया जाए
ताकि पन्नों पर कुछ जगह बनाई जा सके
और कुछ और महत्त्वपूर्ण बातें लिखी जा सके!
ii)
ज़िंदगी एक गिलास की तरह है
जिसमें उसके कार्यों का पानी भरा है।
लोग देखते हैं कि
पानी कहाँ तक ठहरा है!
आधे गिलास पानी को
आशावादी आधा भरा बोलते हैं
तो निराशावादी, आधा ख़ाली।
किन्तु,
सच तो यह है कि
यह आधा-अधूरा सपना है
और इसे पूरा करने का संकल्प भी अपना है।
प्रश्न है कि,
देखनेवाले की मानसिकता क्या है ?
इसे भविष्य में
पूरा देखना
या
पूरा ख़ाली देखना!
-कृष्ण कन्हैया