जिंदगी की चादर
जिंदगी को जिया मैंने
इतना चौकस होकर
जैसेकि नींद में रहती है सजग
चढ़ती उम्र की लड़की कि कहीं
उसके पैरों से चादर न उघड़ जाए।
*****
– अलका सिन्हा
हिंदी का वैश्विक मंच
जिंदगी को जिया मैंने
इतना चौकस होकर
जैसेकि नींद में रहती है सजग
चढ़ती उम्र की लड़की कि कहीं
उसके पैरों से चादर न उघड़ जाए।
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– अलका सिन्हा