कहाँ चले जा रहे हैं, कहीं तो जा रहे हैं, नहीं है ख़बर
क्या चाहते हैं, पता नहीं, कुछ न कुछ तो मिलेगा मगर
ऐसी ही उहा-पोह में जूझता बढ़ा जा रहा है
मंज़िल की तलाश में ये दिल का मुसाफ़िर चला जा रहा है
आज उम्र के इस पड़ाव पर सोचा कुछ रुक कर ज़रा सा हाँफ लें
थोड़ा सा थम कर ज़िंदगी की रफ़्तार को भाँप लें
वो गलियाँ वो मोहल्ला वो शहर वो देश सब पीछे छूट गया
किश्ते और रिश्ते सँभालते-सँभालते कभी लगता है कहीं कुछ टूट गया
कितने ही साथ चले थे मेरे और अब कितने है साथ
बहुतो ने छोड़ दिया और कुछ ने अभी भी थामा हुआ है हाथ
कुछ ऐसे भी थे, जो सफ़र में मिले और फिर जुदा हो गए
कुछ तो अब याद भी नहीं और कुछ ख़ुद के ख़ुदा हो गए
विश्वास दुबे