सबसे सुंदर लड़की

सबसे सुंदर लड़की
काँपती रही
लहरों में-
थर-थर
सिवार सी,
सिहरती रही
आर्द्र दूब पर
नंगे पाँव।

तिनके-तिनके
बहती रही
बारिशों में
वक्त बे वक़्त;
फेरती रही
आँख-
हर मुस्कुराहट से,
खींचती रही
हाथ-
दोस्तों के हाथों से,
डरती रही-
परदेसी आसमानों से,
प्रेमविह्वल
पंछियों से।

सबसे सुन्दर लड़की
ने कभी
सहेज कर नहीं रक्खी
अपनी कोई
तस्वीर
कि जब देह पर उग आया-
पहले-पहल
इन्द्रधनुष,
नाभि में-
चुभी प्रत्यंचा,
जब हरसिंगार के
फूलों के रंग
सामने
पड़ गए फीके,
जब उसके होने से
कतराने लगी चाँदनी,
जब सबसे साधारण
कपड़ों
और
सबसे सस्ती चप्पलों में-
सिकुड़ती –
सहमती-
गुजरी
वीथियों से,
और उसे देखकर
स्थापित ख्यातियों में
फैली
घबराहट,
सुगंधियों में –
उपजी कुंठा।

सबसे सुंदर लड़की
अमरबेल सी –
लिपटी रह गयी
पिता की यादों से,
विधवा माँ के –
प्रारब्ध से,
छोड़ न पाई
देहरी,
जैसे उसकी सहेलियाँ
नहीं छोड़ पाईं
एक के बाद एक
बच्चे जनने की क्रिया,
कितनी तो
लौटीं ही नहीं,
जो भागीं
मौसमों के पीछे

ट्रेनें गुजरती रहीं-
पर सबसे सुन्दर लड़की-
हर हाल में-
खड़ी रही अकेली;
दर्पणों में
देखती रही
उम्र की
उतरती सीढ़ियाँ।

सबसे सुंदर लड़की
छोटे से आले पर
टिमटिमाती,
हरदिन
रचती रही-
अपने काजल से-
बग़ैर बिन्दी-सिन्दूर का-
एक चाँद

*****

-राजीव श्रीवास्तव

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