कलूटी रात
लोग कहने लगे,
“तुम्हारे चेहरे का नूर
कहाँ जा रहा है?”
अपने टोकने लगे
“ये आँखों के नीचे काला बादल
कहाँ से आ रहा है?”
कैसे समझाऊँ लोगों को
कि नूर अपने लूट के ले गए
कैसे बताऊँ अपनों को
कि लोग सफ़ेद ख़्वाबों के बदले में
काले दाग़ दे गए।
ये नज़्में ये कविताएँ
लिखी गईं हैं उसी काली स्याही से
जो जमा की है आँखों के नीचे
कुछ रातें ग़ज़लें लिखने में लगा दीं
कभी रैना किसी की याद में दबा दी
कभी बीत गई निशा लम्बी बातों में
कभी किसी ने सोने नही दिया रातों में
काले अँधेरों में तो ये सताएगी
तेरी याद है, बार-बार आएगी
अँधेरे की आशिक़ी नूर छीन ले जाएगी
रात कलूटी है तो कालिख ही देके जाएगी
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-कनिका वर्मा