तुम और मैं
तुम और मैं
एक अनोखी पहेली
तुम, मैं और बीता हुआ वह क्षण
एक खुबसूरत धरोहर,
बीते हुए वो क्षण
सूई और धागे से
मैने कई बार
स्मृति के आँचल पर
सिं देने की कौशिश करी
और मैने इस तरह सिं दिए
कि तुम्हारे दिये सितम
चुपचाप भर गए,
तुम और मैं
एक पहेली के दो अर्थ
दोनों ही अर्थ सही हैं
पर उनकी सच्चाई सिद्ध
करने के लिए
तर्क की कसौटी पर कस कर
उस पहेली को
क्षत विक्षत नहीं कर सकती,
उस पहेली को पहेली ही रख
चुपचाप संजोये रखती हूँ
यही सोच कर कि
जो खूबसूरती उसके
उलझेपन में है
शायद सुलझने पर न रहे।
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-स्नेह सिंघवी