सूर्योदय
पतझड़ कानन में
पीले पत्तों से लदे
ऊंचे ऊंचे वृक्ष खड़े थे
बीच बीच से लाल
पत्तिंयां झाँक रहीं थीं
मानो किसी ने कुमकुम
के छींटें लगा,
वृक्षों की पूजा करी हो,
तभी सूर्य देव ने
अपनी अलसाई
आँखें खोली
और अपनी लाली से
पत्तियों को धो दिया
रंग गहरे लगने लगे
लगता था किसी ने
पत्तियों को फिर से रंग दिया,
पास फैली झील
लाली को छू कर
दर्पण में अपना
सौन्दर्य निहार रही थी
और जल के आँगन से
झाँकती सिकता
सोने की सिकता
लगाती थी,
सोने की सिकता
लगाती थी,
उस क्षण ने मन को
मेरे बाँध लिया,
आत्म विभोर,लाली में डूबी
करती लाली को प्रणाम,
करती लाली को प्रणाम।
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-स्नेह सिंघवी