मनुहार
प्रणय मांगने आया था मैं
द्वार तुम्हारे अरि अजान
तुम सरका मधु चषकों से
करती थी मेरा सत्कार,
खाली मधु चषकों से
करती जाओगी सत्कार
या हर पाओगी तुम मेरे
अंतर का थोड़ा व्यथा भार,
मेरी इन उखड़ी साँसों में
है अभाव का अट्टहास
या तुमसे कुछ पाने का
यह अरि सुन्दरि ! अथक प्रयास,
झंझा सी तुम अरि सुन्दरि!
चल आती हो बार-बार
और झकोरती तुम मेरे
अंतर के उजड़े वार-पार,
मेरी इन उखड़ी साँसों को तुम
अरि!मापती मधु से आज
या मधु के मिस अनजानी सी
करती तुम मेरा उपहास,
यह अभिनय या मान सुन्दरि
यह मुझको बतलादो
इस अशेष क्रंदन को मेरे
थोड़ा सा समझादो,
आज नहीं तुम जा पाओगी
छोड़ अधुरा व्यथा-जाल
मानो मानो अरि सुन्दरि
यह मेरी आकुल मनुहार
यह मेरी आकुल मनुहार
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-स्नेह सिंघवी