अश्रु
अश्रु तुम अंतर की गाथा
चुपके चुपके कहते
अंतरतम को खोल
जगत के आगे मेरा रखते,
तुम बिन गरिमा प्यार व्यथा
की गाथा कौन भला कहते
अनुभावों की कथा आज
बोलो यूँ कौन कहा फिरते,
आज छिपा असमंजस मन में
वफादार कैसे कह लूँ,
बोलो मीत अरे ओ मेरे
वफादार कैसे कह लूँ ?
तुम अंतर को खोल
जगत के आगे मेरा रखते,
अंतर में रहते तुम मेरे
पर जग से साझी करते,
यह अधिकार मीत ओ मेरे
बोलो कुछ कैसे पाया ?
याद् नहीं कब मैंने तुमको
यह अधिकार दिलाया ?
फिर भी मीत मान, अरे
अंतर में तुमको रखती
और पुनः अंतर से मेरे
यह आवाज निकलती
तुम बिन गरिमा प्यार व्यथा
की गाथा कौन भला कहते,
अनुभावों की कथा आज
बोलो यूँ कौन कहा फिरते
बोलो यूँ कौन कहा फिरते
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-स्नेह सिंघवी