Category: धरोहर

यदि सुख लंबा बना रहे तो – (कविता)

यदि सुख लंबा बना रहे तो यदि सुख लंबा बना रहे तोमन में द्वंद्व उठाता!मानव – मन से एक दशा मेंलंबा रहा न जाता! यदि सुख बना रहे दिन –…

तुम किसी भी विवशता – वश – (कविता)

तुम किसी भी विवशता – वश तुम किसी भी विवशता – वशमीत मत मुझको बनाओ!मैं तुम्हारी ‘भावना का अंग –कैसे बन सकूँ गा?’ यह बताओ! ‘मीत होना’ प्राण कापारस्परिक अनुबंध…

जो आलोचना और की करते – (कविता)

जो आलोचना और की करतेजो आलोचना और की करतेवह ही यदि हम निज की कर लें!तो संभवत: इस जगती केअनगिन ‘तापों का भव’ तर लें! अन्य जनों में दोष देखनाबहुत…

ब्रजराज किशोर कश्यप की कविताएँ – (कविता)

ब्रजराज किशोर कश्यप की कविताएँ 1. मानव और गणित मानव ने जब गणना सीखी वह हर्षायाबड़े चाव से उसने जोड़ा और घटाया योग और ऋण का कार्य उसे अधिक न…

ब्रजराज किशोर कश्यप – (परिचय)

ब्रजराज किशोर कश्यप स्वर्गीय डॉक्टर ब्रजराज किशोर कश्यप जन्म-स्थान: अंबाला, हरियाणा निवास: टोरंटो ओंटेरियो शिक्षा: बी.ए. ऑनर्स गणित में एम.ए. पी.एच .डी. ( ऑपरेशन रिसर्च) लेखन: हिंदी, अंग्रेजी,उर्दू, संस्कृत,बांग्ला तथा…

शिवनंदन सिंह यादव की कविताएँ – (कविता)

शिवनंदन सिंह यादव की कविताएँ 1. छोटी-छोटी बातों पर भी बहुत सोचना ठीक नहीं हैप्रति पग फूंक फूंक कर रखनाकोई अच्छी नीति नहीं है! छोटी-छोटी बातों से हीहम अपना स्वभाव…

शिवनंदन सिंह यादव – (परिचय)

शिवनंदन सिंह यादव स्वर्गीय डॉक्टर शिवनंदन सिंह यादव जन्म: जिला एटा, उत्तर प्रदेश, भारत एम.बी.बी.एस.और एम.डी. आगरा विश्वविद्यालय से 1967 से कनाडा वास एफ.आर.सी.पी.(सी) कनाडा से, टोरंटो कनाडा में मेडिकल…

प्रथम अध्याय / तृतीय वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति

प्रथम अध्याय / तृतीय वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति ऋतं पिबन्तौ सुकृतस्य लोके गुहां प्रविष्टौ परमे परार्धे । छायातपौ ब्रह्मविदो वदन्ति पञ्चाग्नयो ये च त्रिणाचिकेताः ॥…

प्रथम अध्याय / तृतीय वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति

प्रथम अध्याय / तृतीय वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति महतः परमव्यक्तमव्यक्तात्पुरुषः परः । पुरुषान्न परं किंचित्सा काष्ठा सा परा गतिः ॥ ११ ॥ जीवात्मा से तो…

द्वितीय अध्याय / प्रथम वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति

द्वितीय अध्याय / प्रथम वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति पराञ्चि खानि व्यतृणत् स्वयम्भू- स्तस्मात्पराङ्पश्यति नान्तरात्मन् । कश्चिद्धीरः प्रत्यगात्मानमैक्ष- दावृत्तचक्षुरमृतत्वमिच्छन् ॥ १ ॥ इन्द्रियों की बहिर्मुख वृति,…

द्वितीय अध्याय / प्रथम वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति

द्वितीय अध्याय / प्रथम वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति मनसैवेदमाप्तव्यं नेह नानाऽस्ति किंचन । मृत्योः स मृत्युं गच्छति य इह नानेव पश्यति ॥ ११ ॥ शुचि…

द्वितीय अध्याय / द्वितीय वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति

द्वितीय अध्याय / द्वितीय वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति पुरमेकादशद्वारमजस्यावक्रचेतसः । अनुष्ठाय न शोचति विमुक्तश्च विमुच्यते । एतद्वै तत् ॥ १ ॥ मानव शरीरी रूप पुर,ईश्वर…

द्वितीय अध्याय / द्वितीय वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति

द्वितीय अध्याय / द्वितीय वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति अग्निर्यथैको भुवनं प्रविष्टो रूपं रूपं प्रतिरूपो बभूव । एकस्तथा सर्वभूतान्तरात्मा रूपं रूपं प्रतिरूपो बहिश्च ॥ ९ ॥…

द्वितीय अध्याय / तृतीय वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति

द्वितीय अध्याय / तृतीय वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति ऊर्ध्वमूलोऽवाक्शाख एषोऽश्वत्थः सनातनः । तदेव शुक्रं तद्ब्रह्म तदेवामृतमुच्यते । तस्मिँल्लोकाः श्रिताः सर्वे तदु नात्येति कश्चन । एतद्वै…

द्वितीय अध्याय / तृतीय वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति

द्वितीय अध्याय / तृतीय वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति यदा पञ्चावतिष्ठन्ते ज्ञानानि मनसा सह । बुद्धिश्च न विचेष्टते तामाहुः परमां गतिम् ॥ १० ॥ जब मन…

प्रथम अध्याय / द्वितीय वल्ली / भाग ३ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति

प्रथम अध्याय / द्वितीय वल्ली / भाग ३ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति एतदालम्बनँ श्रेष्ठमेतदालम्बनं परम्। एतदालम्बनं ज्ञात्वा ब्रह्मलोके महीयते ॥ १७ ॥ ॐ कार आलंबन अत्युतम, श्रेष्ठतम है, परम…

प्रथम अध्याय / द्वितीय वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति

प्रथम अध्याय / द्वितीय वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति न नरेणावरेण प्रोक्त एष सुविज्ञेयो बहुधा चिन्त्यमानः । अनन्यप्रोक्ते गतिरत्र नास्ति अणीयान् ह्यतर्क्यमणुप्रमाणात् ॥ ८ ॥ सूक्षातिसूक्ष्म…

प्रथम अध्याय / द्वितीय वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति

प्रथम अध्याय / द्वितीय वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति अन्यच्छेयोऽन्यदुतैव प्रेयस्ते उभे नानार्भे पुरुषं सिनीतः। तयोः श्रेय आददानस्य साधु भवति हीयतेऽर्थाद्य उ प्रेयो वृणीते ॥१॥ कल्याण…

प्रथम अध्याय / प्रथम वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति

प्रथम अध्याय / प्रथम वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति त्रिणाचिकेतस्त्रिभिरेत्य सन्धिं त्रिकर्मकृत् तरति जन्ममृत्यू । ब्रह्मजज्ञ। देवमीड्यं विदित्वा निचाय्येमां शानितमत्यन्तमेति ॥१७॥ त्रय बार करते जो अनुष्ठान…

प्रथम अध्याय / प्रथम वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति

कठोपनिषद – (पद्यानुवाद) मृदुल कीर्ति ॐ श्री परमात्मने नमः शांति पाठ ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु । मा विद्विषावहै । रक्षा…

Translate This Website »