‘वाचाल सन्नाटे’ – (कहानी)
वाचाल सन्नाटे – सूर्यबाला मैं उन्हें बहुत पहले से जानती हूं।… मेरे देखते-देखते कहानी बन गई वे। कुल साढ़े छः सात मिनट की कहानी। (साठ सत्तर साल लंबी जिंदगी की।)…
हिंदी का वैश्विक मंच
वाचाल सन्नाटे – सूर्यबाला मैं उन्हें बहुत पहले से जानती हूं।… मेरे देखते-देखते कहानी बन गई वे। कुल साढ़े छः सात मिनट की कहानी। (साठ सत्तर साल लंबी जिंदगी की।)…
दादी और रिमोट -सूर्यबाला चूँकि इसके सिवा कोई चारा न था… गाँव से दादी ले आई गईं। हिलती-डुलती, ठेंगती-ठंगाती। लाकर, ऊँची इमारतों वाले शहर के सातवें माले पर पिंजरे की…
कागज की नावें चांदी के बाल -सूर्यबाला मैं बहुत छोटी हूँ। वैसा ही वह भी। सिर्फ दो दर्जे उफपरवाली क्लास में। अपनी कोठी की घुमावदार सीढ़ियों पर बैठी मैं रंग-बिरंगे…
कहां कहां से लौटेंगे हम…..! – सूर्यबाला मेधा, बेटू और साशा, ढाई हफ्तों की बोरियत भरी थकान के बाद अपनी-अपनी सीटों पर लुढ़क लिए हैं। बच रहा मैं, अपनी मनमानी…
शफल इट + शेक इट = जिंदगी – सूर्यबाला एकदम शुरूआत में मैंने कभी कहा है न, कि हम घर नहीं, एक सपने में रहा करते थे।… यानी हमारे पास…
मां की डायरी –सूर्यबाला आवाजें आ रही हैं…. चले गए सब। वेणु, मेधा, बेटू और साशा¬ वृंदा, विशाखा, दिवांग और दूर्वा भी…. अब सिर्फ आवाजें गूंज रही हैं।… बेटू ऊब…
‘रिश्तों के सिलेबस में…’ – सूर्यबाला ‘हेलो… वेणु… बेटे!‘ पहली बार मां की आवाज जैसे बहुत दूर से आती लगी… और थकी हारी भी। कुछ ऐसे जैसे कभी का देखा,…
‘योगी बॉस’ – सूर्यबाला चिल्ड, बियर की झाग भरी ग्लास के साथ, सामने काउच पर पालथी मारकर बैठा यह क्या बेटू ही है? यानी पिछले ढाई महीनों में, बैठने-बोलने का…
1. समंदर : एक प्रेमकथा “उधर से तेरे दादा निकलते थे और इधर से मैं…” दादी सुनाना शुरू किया। किशोर पौत्री आँखें फाड़कर उसकी ओर देखती रही—एकदम निश्चल; गोया कहानी…
परिचय : बलराम अग्रवाल जन्म : 26 नवम्बर 1952 को उत्तर प्रदेश (भारत) के जिला बुलन्दशहर में । शिक्षा : पीएच. डी. (हिंदी), अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा। पुस्तकें : कथा…
(1) असहिष्णु चुप थी गंगा सदियों से तो बड़ी भली थी लगी बोलने जब से दुनिया है अचरज में। कितना बड़ा अनर्थ हो रहा है भूतल पर! दासी देती है…
कौन देश को वासी, वेणु की डायरी – डॉ. जयशंकर यादव) प्रवासी भारतीय होना भारतीय समाज की महत्वाकांक्षा भी है,सपना भी है,कैरियर भी है और सब कुछ मिल जाने के…
कालिदास की वैज्ञानिक दृष्टि और उनका राष्ट्रीय क्षितिज – कमलाकांत त्रिपाठी याद हो कि न याद हो: कालिदास की वैज्ञानिक दृष्टि और उनका राष्ट्रीय क्षितिज पुराणमित्येव न साधु सर्वं न…
सुबह के आठ बजते-बजते सूरज भड़भूजे की भट्ठी की तरह दहकने लगा था। वह पूरा जोर लगाकर लगभग भागते हुए, पीछा कर रहे सूरज के लहकते गोले की लपट से…