सिरहाने में रखी है किताब – (कविता)
सिरहाने में रखी है किताब कई दिनों तक पड़ी रहींमेरी पसंद की किताबेंमेरे सिरहानेपढ़ती रही मैं उन्हेंकिसी-किसी बहाने। कभी नींद लाने की कोशिश मेंतो कभी जाग जाने की खातिरकभी खुदबुदाते…
हिंदी का वैश्विक मंच
सिरहाने में रखी है किताब कई दिनों तक पड़ी रहींमेरी पसंद की किताबेंमेरे सिरहानेपढ़ती रही मैं उन्हेंकिसी-किसी बहाने। कभी नींद लाने की कोशिश मेंतो कभी जाग जाने की खातिरकभी खुदबुदाते…
समर्पित अहसास हैं बहुत ही खास कुछ अहसास मेरे पासकर रही हूं आज वो तुमको समर्पित। मुट्ठियों में हूं सहेजे बालपन की गिट्टियांभेज न पाई कभी जो प्रेम की कुछ…
शिवोहम् आंखों की नमी से गूंदती हैज़िन्दगी का आटाथपकियां दे देकर चकले की धार परगोल-गोल घूमती हैरिश्तों की आंच पर रोटी के साथ-साथसिंकती है खुद भीउनके लिएबड़के और छुटकी के…
जिंदगी की चादर जिंदगी को जिया मैंनेइतना चौकस होकरजैसेकि नींद में रहती है सजगचढ़ती उम्र की लड़की कि कहींउसके पैरों से चादर न उघड़ जाए। ***** – अलका सिन्हा
पीपल, पुरखे और पुरानी हवेली – अलका सिन्हा चैटर्जी लेन का यह सबसे पुराना, दो तल्ला मकान होगा जिसे समय के साथ नया नहीं कराया गया। नीचे-ऊपर मिला कर लगभग…
ई-मुलाकात@फेसबुक.कॉम – अलका सिन्हा 20 अगस्त, 2013 याद नहीं रखा तो भूल भी नहीं पाई कि आज की ही तारीख को रात नौ बजे का समय मुलाकात के लिए तय…
बेइन्तहा मुहब्बत सच है, मैंने किया है तुमसे अटूट प्रेमबेइन्तहा मुहब्बतले ली है दुनिया भर से लड़ाईपर जुनून ही न हुआ तो मुहब्बत कैसीसच है, मैंने दीवानावार चाहा है तुम्हें।…
रूहानी रात और उसके बाद – अलका सिन्हा 03 सितंबर, 2008 21 अगस्त से 31 अगस्त, 2008 तक यूके हिंदी समिति और नेहरू सेंटर, लंदन द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन…
भंडारघर पहले के गांवों में हुआ करते थेभंडारघर।भरे रहते थे अन्न से, धान से कलसेडगरे में धरे रहते थेआलू और प्याज़गेहूं-चावल के बोरेऔर भूस की ढेरी मेंपकते हुए आम।नई बहुरिया…
बहुत मुश्किल है बहुत मुश्किल हैरंगों से भरे कैनवास परसफ़ेद चुप्पी के रंग को उकेरनातमाम उम्र जो रंग भरती रही जीवन मेंउस मॉं को सफ़ेद चादर में लपेटनाया अपनी ही…
हमें रास आ गई है कभी क़िस्सागोईकभी सड़ककभी रसोईकभी बतकहीकभी अनकहीकभी यूँ ही भटकनाकभी बिन बात अटकनाकभी किताबों की बातेंकभी बेबाक़ मुलाक़ातेंकभी ईद कभी तीजकभी इक दूजे पर खीजकभी लड़ना…
स्त्री होना… मेरी ना उसे स्वीकार नहीं थीमेरी हाँ भी होती तो भी नहीं बदलता कुछ भीपुरूष होने का या स्त्री होने काअंतर तो रहता ही हमेशाबड़ा आसान है मुझे…
प्रेम प्रेम की यादों में डूबी स्त्री नेप्रेम की बारिश में डूबते हुए पूछा खुद सेक्या चाहती हो तुम मुझ सेबारिश सिहर सिहर गयीप्रेम के खुले आकाश में विचरती स्त्री…
अकेला एक ख़ामोशी, तूफ़ान के बाद कीसाक्षी बनी चुप्पी से सराबोर दीवारेंमाथे की तनी हुई नसेंऔर आँखों की बहनें की रफ़्तारसब कुछ तहस नहस साकाश कि कोई समझ पातानितान्त अकेलापन…
शत सिरून घूमती रही मैं सारे शहर मेंमैंने देखा ओपेरा के पास लोगों का हुजूमदेख आई मैं काली झील का कोनादूर से देखा मैंने चमकते अरारात कोसफ़ेद बर्फ़ के साथ…
कुलबुलाहट सोचती हूँ कि हिस्सा बन जाऊँइस अंजाने देश कापर लोगों की अजनबी आँखेंसर्द चाबुक सी लगती हैं मेरी देह परफिर सोचती हूँ कि दरिया बन जाऊँबहती रहूँ यहाँ की…
प्रवासी आभास ख़्बाव आजकल रातों में खूब डराते हैंबर्फ़ की चादर है और हम सर्द हो जाते हैदूर तलक चुप्पी है सन्नाटा है सफ़ेद चादर कासपने है किबस ख़ामोशी से…
अनीता वर्मा समीक्षक व स्तंभकार अनीता वर्मा ना केवल प्रिण्ट मीडिया बल्कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से भी जुड़ी हैं। यू- ट्यूब पर पुस्तक समीक्षा की इनकी जहां कई वीडियो हैं वही…
बौन्जाई कद्दावर वृक्ष की जड़ गमले में लगानासच-सच बतलानाकैसी चतुराई हैऔर जो ये थोड़ी-सी जमीन मेंपीपल बरगद जैसी छतनार सी पनप आई हैये तो एक औरत हैतुम कहते हो बौन्जाई…
धिनाधिन…धिन… धिनाधिन… -अलका सिन्हा हल्की बरसात के बाद मौसम सुहावना हो गया था। रास्ते में बिछे सुनहले पत्तों से आती चर्र- मर्र की आवाज अस्फुट-सी कुछ कह रही थी जो…