Category: प्रवासी व्यंग्य

मायाजाल – (संस्मरण)

मायाजाल – दिव्या माथुर सुबह के 6 भी नहीं बजे थे कि हम घर से निकल पड़े। बेटे ने कार की सीट को गर्म कर दिया था पर फिर भी…

त्रिया चरित्रम पुरुषस्य भाग्यम – (व्यंग्य)

त्रिया चरित्रम पुरुषस्य भाग्यम – दिव्या माथुर जौर्ज बर्नार्ड शा के मुताबिक पुरुष को चाहिए कि जब तक टाल सके टाले और स्त्री को चाहिए कि जितनी जल्दी हो सके…

व्हाट्सअप – लुत्फ़, कोफ़्त और किल्लत – (व्यंग्य)

व्हाट्सअप – लुत्फ़, कोफ़्त और किल्लत – दिव्या माथुर एक ज़माना था कि जब हम व्हाट्सऐप को प्रभु का वरदान मान बैठे थे, फिर जो वरदानों की बौछार शुरू हुई…

एक नाटक के पीछे का नाटक – (व्यंग्य)

एक नाटक के पीछे का नाटक -आस्था देव दिन के इस समय जब न सुबह है, न शाम , न दोपहर! घड़ी ने 10:30 बजाये हैं। बावजूद इसके कि मैं…

कल  करै सो आज कर – (व्यंग्य)

कल करै सो आज कर -आस्था देव अक्सर कुछ दमदार लिखने के लिए, प्रेरणा तलाशनी पड़ती है पर आजकल जिंदगी की रेलमपेल में प्रेरणा का ऐसा अकाल पड़ा रहता है,…

विराम को विश्राम कहाँ! – (व्यंग्य)

विराम को विश्राम कहाँ! -आरती लोकेश गए दिनों कुछ संपादकीय कार्य करते हुए मुझे लगभग एक ही जैसी चीज़ें बार-बार खटकीं। कुछ रचनाएँ, शब्द संयोजन, वाक्य विन्यास और विराम चिह्न…

पुरस्कृत कविता

किन्हीं कम प्रसिद्ध कविवर के काव्य-संकलन को जब साहित्य के श्रेष्ठ सम्मान से पुरस्कृत किया गया तो मन में जिज्ञासा जागी कि तनिक उनकी कविताओं का आस्वादन किया जाए। हम…

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