Category: प्रवासी रचनाकार

ब्लडी कोठी – (कहानी)

ब्लडी कोठी – दिव्या माथुर ‘चोर भी दो घर छोड़कर डाका डालता है, मम्मी।’ बड़े बेटे सुमित की बात सुनकर मानसी का दिल दहल गया; अपने ही छोटे भाई के…

बचाव – (कहानी)

बचाव – दिव्या माथुर निंदिया के बाबा कहा करते थे कि दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं; एक तो वे जो पक्षियों की तरह सूरज के उगते ही…

संदेह – (कहानी)

संदेह – दिव्या माथुर ब्रायन पीटर्स पूर्णतः आश्वस्त था; चौपड़ का हर मोहरा उसकी मर्ज़ी के मुताबिक पर चल रहा था। संबंधी, मित्र, पड़ोसी और सहकर्मी उसकी तारीफ़ करते नहीं…

सांप-सीढ़ी – (कहानी)

सांप-सीढ़ी – दिव्या माथुर सिनेमाघर के घुप्प अंधेरे में भी राहुल की आंखें बरबस खन्ना-अंकल के उस हाथ पर थीं जो उसकी मम्मी के कंधों और कमर पर बार-बार बहक…

आशियाना – (कहानी)

आशियाना – दिव्या माथुर नर्स एडवर्ड ने आशा को उठा कर गाव-तकियों के सहारे बैठा दिया और बिस्तर के दोनों तरफ़ लगी स्टील की शलाकाओं को उठा कर उसे व्यवस्थित…

एक था मुर्गा – (कहानी)

एक था मुर्गा – दिव्या माथुर डाक्टर पीटर्स के रोगनिदानुसार टिनिटस का सम्भवतः कोई इलाज न था; कैसे जी पाएगी अक्षता अपने कानों में इस शोर के साथ? जैसे-जैसे सांझ…

बेचारी सिंथिया – (कहानी)

बेचारी सिंथिया – दिव्या माथुर हायसिंथ अथवा थियो, उर्फ़ ‘पुअर सिंथिया’ अथवा ‘घुन्नी सिंथिया’ जैसे नामों और उपनामों से सुसज्जित, सिंथिया को सिर्फ़ उसकी माँ ईडिथ ही उसे पूरे नाम…

पुरु और प्राची – (कहानी)

पुरु और प्राची – दिव्या माथुर बद्रीनारायण ओसवाल का इकलौता वारिस था उनका बेटा, हरिनारायण जो एक अमेरिकन लड़की से शादी करके कैलिफ़ोर्निया में जा बसा था। हालांकि हरिनारायण की…

एडम और ईव – (कहानी)

एडम और ईव – दिव्या माथुर बात ज़रा सी थी; एक झन्नाटेदार थप्पड़ ईव के गाल पर पड़ा। वह संभल नहीं पाई, कुर्सी और मेज़ से टकराती हुई ज़मीन पर…

पूनम कासलीवाल – (परिचय)

पूनम कासलीवाल शिक्षिका, लेखिका और कवयित्री। एक प्रकाशित हिंदी उपन्यास – रुके – रुके से कदम और तीन काव्य संग्रह (सह-लेखन में)। हिंदी साहित्य में गहरी रुचि और अपनी रचनात्मकता…

उसके श्रम के आँसू – (कविता)

उसके श्रम के आँसू अब्र से कल्पित कोमल चक्षु उसके भींग गए उसके श्रम के आँसू वह हृदय स्थल तक भीत गए मेरी कामना की प्यास का नज़ारा एक यह…

प्रवासी लेखिका का फ़ेंग शुई – (कहानी)

प्रवासी लेखिका का फ़ेंग शुई डॉ आरती ‘लोकेश’ अरुंधति घर के दरवाज़े पर पहुँची ही थी कि घनघनाती फ़ोन की घंटी बंद दरवाज़े के बाहर तक सुनाई पड़ रही थी।…

फ़िबोनाची प्रेम (कहानी)

फ़िबोनाची प्रेम डॉ आरती ‘लोकेश’ “ये सुनंदा ने दुबई की फ्लाइट क्यों ली? …जबकि उसे मालूम था कि हम आबुधाबी रहते हैं। … इतनी दूर जाना आसान है क्या?” अश्विन…

दस रुपए का सिक्का – (कहानी)

दस रुपए का सिक्का डॉ आरती ‘लोकेश’ उफ़्फ़! दिख ही नहीं रहा। कहाँ चला गया? अलमारी के नीचे तो नहीं? पचहत्तर की हो चली हूँ। आँखों की रोशनी भी खत्म…

फूस की सीढ़ी – (कहानी)

फूस की सीढ़ी डॉ आरती ‘लोकेश’ समाचार-पत्र में कल के आयोजन की खबर खूब चमक रही थी। साध्वी गौर से सब पढ़ ही रही थी कि फ़ोन की घंटी बजी।…

गजदंत – (कहानी)

गजदंत डॉ आरती ‘लोकेश’ घर आते ही गौतमी ने अपने चेहरे से थकान उतारकर अपनी वर्दी के साथ ही अलगनी पर टाँग दी। हाथ-मुँह धोया, कपड़े बदले। आईने में खुद…

आधी माँ, अधूरा कर्ज़ (कहानी)

आधी माँ, अधूरा कर्ज़ डॉ आरती ‘लोकेश’ आज सुबह अपनी हवेली से निकल छोटी माँ की हवेली में आई तो गहमा-गहमी मची हुई थी। दोनों हवेलियों के मध्य दालान वाला…

रविवार की छुट्टी – (कहानी)

रविवार की छुट्टी – पूनम कासलीवाल देर रात सब काम निबटा कर लेटने लगी तो याद आया राजमा भिगोना भूल गयी। अंधेरे में टटोलते हुए उठी, कहीं आलोक की नींद…

कटघरा – (कविता)

कटघरा रात का अँधेरासन्नाटा, औरमेरे वो एकाकी पलचिन देते हैं मुझेमन के कटघरे मेंहर रोज़पूछती हूँकितने सवालखुद सेदेती हूँ हर जवाबखुद हीहोती हूँकभी आरोपी, कभी दोषीखुद ही पक्ष, खुद ही…

भली थी – (कविता)

भली थी इक लड़कीकितनीभली थीनाज़ बिछौनेपली थीमाँ अँगना में खेलतीजूही कीकली थीपिता हथेली पे रखीगुड़-मिश्रीडली थीअल्हड़ हिरना झूमतीथोड़ी सीपगली थीभावी की गलियों मेंस्वप्न संजोएचली थीब्याही तो बेगाने घरधू-धू करजली थीबस…

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