2050 – (कहानी)
2050 – दिव्या माथुर ऋचा की आँखों में उच्च वर्ग का सा इस्पात उतर आया, एकबारगी उसे लगा कि वह भी इस्पात में ढल सकती है। गँवार लोग ही रोते…
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2050 – दिव्या माथुर ऋचा की आँखों में उच्च वर्ग का सा इस्पात उतर आया, एकबारगी उसे लगा कि वह भी इस्पात में ढल सकती है। गँवार लोग ही रोते…
पंगा – दिव्या माथुर एक नई नवेली दुल्हन सी एक बी-एम-डब्ल्यु पन्ना के पीछे लहराती हुई सी चली आ रही थी, जैसे दुनिया से बेख़बर एक शराबी अपनी ही धुन…
कबाड़ – दिव्या माथुर ‘गद्दे क्या सस्ते आते हैं, रक्षित? मैं मर जाऊंगी तो तुम्हें नया गद्दा फेंकना बड़ा बुरा लगेगा।’ कैंसर से ग्रसित इन्दिरा की यह बात बहु रीटा…
गूगल – दिव्या माथुर ‘ओह शिट्ट’ कहकर एक लड़की डर के मारे मुझसे दूर जा खड़ी हुई जैसे कि उसने कोई शेर देख लिया हो। मैं मुश्किल से अपनी हंसी…
ब्लडी कोठी – दिव्या माथुर ‘चोर भी दो घर छोड़कर डाका डालता है, मम्मी।’ बड़े बेटे सुमित की बात सुनकर मानसी का दिल दहल गया; अपने ही छोटे भाई के…
बचाव – दिव्या माथुर निंदिया के बाबा कहा करते थे कि दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं; एक तो वे जो पक्षियों की तरह सूरज के उगते ही…
संदेह – दिव्या माथुर ब्रायन पीटर्स पूर्णतः आश्वस्त था; चौपड़ का हर मोहरा उसकी मर्ज़ी के मुताबिक पर चल रहा था। संबंधी, मित्र, पड़ोसी और सहकर्मी उसकी तारीफ़ करते नहीं…
सांप-सीढ़ी – दिव्या माथुर सिनेमाघर के घुप्प अंधेरे में भी राहुल की आंखें बरबस खन्ना-अंकल के उस हाथ पर थीं जो उसकी मम्मी के कंधों और कमर पर बार-बार बहक…
आशियाना – दिव्या माथुर नर्स एडवर्ड ने आशा को उठा कर गाव-तकियों के सहारे बैठा दिया और बिस्तर के दोनों तरफ़ लगी स्टील की शलाकाओं को उठा कर उसे व्यवस्थित…
एक था मुर्गा – दिव्या माथुर डाक्टर पीटर्स के रोगनिदानुसार टिनिटस का सम्भवतः कोई इलाज न था; कैसे जी पाएगी अक्षता अपने कानों में इस शोर के साथ? जैसे-जैसे सांझ…
बेचारी सिंथिया – दिव्या माथुर हायसिंथ अथवा थियो, उर्फ़ ‘पुअर सिंथिया’ अथवा ‘घुन्नी सिंथिया’ जैसे नामों और उपनामों से सुसज्जित, सिंथिया को सिर्फ़ उसकी माँ ईडिथ ही उसे पूरे नाम…
पुरु और प्राची – दिव्या माथुर बद्रीनारायण ओसवाल का इकलौता वारिस था उनका बेटा, हरिनारायण जो एक अमेरिकन लड़की से शादी करके कैलिफ़ोर्निया में जा बसा था। हालांकि हरिनारायण की…
एडम और ईव – दिव्या माथुर बात ज़रा सी थी; एक झन्नाटेदार थप्पड़ ईव के गाल पर पड़ा। वह संभल नहीं पाई, कुर्सी और मेज़ से टकराती हुई ज़मीन पर…
प्रवासी लेखिका का फ़ेंग शुई डॉ आरती ‘लोकेश’ अरुंधति घर के दरवाज़े पर पहुँची ही थी कि घनघनाती फ़ोन की घंटी बंद दरवाज़े के बाहर तक सुनाई पड़ रही थी।…
फ़िबोनाची प्रेम डॉ आरती ‘लोकेश’ “ये सुनंदा ने दुबई की फ्लाइट क्यों ली? …जबकि उसे मालूम था कि हम आबुधाबी रहते हैं। … इतनी दूर जाना आसान है क्या?” अश्विन…
दस रुपए का सिक्का डॉ आरती ‘लोकेश’ उफ़्फ़! दिख ही नहीं रहा। कहाँ चला गया? अलमारी के नीचे तो नहीं? पचहत्तर की हो चली हूँ। आँखों की रोशनी भी खत्म…
फूस की सीढ़ी डॉ आरती ‘लोकेश’ समाचार-पत्र में कल के आयोजन की खबर खूब चमक रही थी। साध्वी गौर से सब पढ़ ही रही थी कि फ़ोन की घंटी बजी।…
गजदंत डॉ आरती ‘लोकेश’ घर आते ही गौतमी ने अपने चेहरे से थकान उतारकर अपनी वर्दी के साथ ही अलगनी पर टाँग दी। हाथ-मुँह धोया, कपड़े बदले। आईने में खुद…
आधी माँ, अधूरा कर्ज़ डॉ आरती ‘लोकेश’ आज सुबह अपनी हवेली से निकल छोटी माँ की हवेली में आई तो गहमा-गहमी मची हुई थी। दोनों हवेलियों के मध्य दालान वाला…
रविवार की छुट्टी – पूनम कासलीवाल देर रात सब काम निबटा कर लेटने लगी तो याद आया राजमा भिगोना भूल गयी। अंधेरे में टटोलते हुए उठी, कहीं आलोक की नींद…