जीवन की साँझ – (कविता)
जीवन की साँझ जीवन की साँझ का प्रहर,ढल चली है दोपहर।बयार मंद-मंद है,धूप भी नहीं प्रखर॥ यह समय भला-भला,नये से रंग में ढला।जीवन का नया मोड़ है,न कोई भाग दौड़…
हिंदी का वैश्विक मंच
जीवन की साँझ जीवन की साँझ का प्रहर,ढल चली है दोपहर।बयार मंद-मंद है,धूप भी नहीं प्रखर॥ यह समय भला-भला,नये से रंग में ढला।जीवन का नया मोड़ है,न कोई भाग दौड़…
पंख बन पंख बन, परवाज़ बनख़ुद अपने सर का ताज बन,सुन गुनगुना रही जो ज़िन्दगीइस मौसीक़ी का साज़ बन तू उज्जवला, सहस्रज्वला,न अश्रु स्वेद छलछला,प्रतिबिम्ब बन कर जी चुकीअब रौशनी…
डरपोक खिड़की बंद वो खिड़की थीबरसों से यूँ ही पड़ी थीकमरे के कोने में डरतीछुपी सी खड़ी थी कभी झाँकती भी जो बाहरतो बंद कपाटों से कुछदिखता नहीं था बड़ा…
ओ पथिक दूर तक निगाह में जब न कोई दरख़्त होचिलचिलाती राह में धूप बड़ी सख़्त होये मान आगे मिलेंगे गुलिस्ताँन रुक पथिक, न पाँव तेरे सुस्त हों कभी धुँधले…
चाय और वो सुनो— ये दो चाय इधर भिजवानाज़रा जल्दी!मैं जल्दी में था,आख़िर बाल श्रम पे राष्ट्रीय गोष्ठी थी शहर मेंमेरी कविताओं पे चर्चा भी थीइस लिए जल्दी में था…
अम्बिका शर्मा जन्म-स्थान: आगरा, उ. प्र. वर्तमान निवास: मोंट्रीऑल/कैनेडा शिक्षा: स्नातकोत्तर बायोटेक्नॉलोजी प्रकाशित रचनाएँ: अहा ज़िंदगी, नव भारत टाइम्ज़, नवल उत्तराखंड लेखन-विधाएँ: कविता, गीत, नज़्म उल्लेखनीय गतिविधियाँ: संयोजक कबीर सेंटर…
साथी रहने दो प्रिय, मत लो मेरीलोहे की बेडौल कड़ाही।यह छिछली सी, बड़ी कड़ाही,दादी से माँ ने पाई थी।भारत छोड़ चली थी जब मैं,साथ इसे भी ले आई थी। अपनी…
दुविधा क्यों लिखूँ, किसके लिये?यह प्रश्न मन को बींधता है। लेख में मेरे जगत कीकौन सी उपलब्धि संचित?अनलिखा रह जाय तोहोगा भला कब, कौन वंचित?कौन तपता मन मरुस्थलकाव्य मेरा सींचता…
मेरा प्यार टेक कर घुटने, झुका सिर,प्रेम का जो दान माँगे,हो किसी का प्यार लेकिन,प्यार वह मेरा नहीं है। रख नहीं पाया मान निज जो,प्यार वह कैसे करेगा?हीनता से ग्रस्त…
पीला पत्ता रुको साथी, हटा लो हाथ को,न तोड़ो, छोड़ दो, पीले पड़े इस पात को। कहा तुमने, हरित इस डाल पर,यह अब नही सजता।नये, चिकने, चमकते किसलयों के बीच,है…
किस किस को ले डूबा पानी किस किस को ले डूबा पानीपानी आख़िर निकला पानी ऐसे कब बरसा था पहलेअब के बरसा इतना पानी कच्चे घरों पर क्यूँ बरसा थापागल…
हुई मुद्दत कोई आया नहीं था हुई मुद्दत कोई आया नहीं थाये घर इतना कभी सूना नहीं था वो मेरा दोस्त था लेकिन कभी वोबुरे वक़्तों में काम आया नहीं…
इक मुसाफ़िर राह से भटका हुआ इक मुसाफ़िर राह से भटका हुआइक दिया मुंडेर पर जलता हुआ एक पत्ता शाख से गिरता हुआइक परिंदा आस्माँ छूता हुआ एक तितली फूल…
जहाँ में इक तमाशा हो गए हैं जहाँ में इक तमाशा हो गए हैंहमें होना था क्या, क्या हो गए हैं नुमाइश कर रहे हैं ज़िन्दगी कीनज़ारा अच्छा ख़ासा हो…
अखिल भंडारी जन्म: जालंधर (पंजाब) निवास: १९८३ से कैनेडा में संप्रति : आलेख, कहानी, और कविता लेखन सदस्य: हिन्दी राइटर्स गिल्ड संपादक: ग़ज़ल संपादन (साहित्य कुंज.नेट) वेब उपस्थिति : अखिल…
मैं और गणित प्रसन्नता में मैंने स्वयं को जोड़ा,अवसाद में स्वयं को घटाया,मद में स्वयं को गुणित किया,घोर निराशा में स्वयं को विभाजित किया, और आश्चर्य से पाया किइन सारे…
छोटी छोटी बातें छोटी छोटी बातों में, कितना सुख समाया है !उनकी वो मुस्कुराहट, उनके आने की आहट,छोटी सी पाती में किसका सन्देसा आया है ?छोटी छोटी बातों में…. नन्हे…
माँ माँ बनकर ही मैंने जाना,क्या होता है माँ का प्यार।जिस माँ ने अनजाने ही,दे दिया मुझे सारा संसार॥ गरमी से कुम्हलाये मुखपर भी जो जाती थी वार।शीत भरी ठंडी…
मेरे जीवन का कैनवास मेरे जीवन के कैनवास पर तुमने जो चित्र अंकित किया हैउसमें समय-समय पर कई-कई रंग बिखरते गए हैं एक दीर्घ समय तक का हमारा साथ,और उस…
आकांक्षा थक चले हैं पाँव, बाहें माँगती हैं अब सहारा।चहुँ दिशि जब देखती हूँ, काम बिखरा बहुत सारा॥ स्वप्नदर्शी मन मेरा, चाहता छू ले गगन को,मन की गति में वेग…