हमें रास आ गई है – (कविता)
हमें रास आ गई है कभी क़िस्सागोईकभी सड़ककभी रसोईकभी बतकहीकभी अनकहीकभी यूँ ही भटकनाकभी बिन बात अटकनाकभी किताबों की बातेंकभी बेबाक़ मुलाक़ातेंकभी ईद कभी तीजकभी इक दूजे पर खीजकभी लड़ना…
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हमें रास आ गई है कभी क़िस्सागोईकभी सड़ककभी रसोईकभी बतकहीकभी अनकहीकभी यूँ ही भटकनाकभी बिन बात अटकनाकभी किताबों की बातेंकभी बेबाक़ मुलाक़ातेंकभी ईद कभी तीजकभी इक दूजे पर खीजकभी लड़ना…
स्त्री होना… मेरी ना उसे स्वीकार नहीं थीमेरी हाँ भी होती तो भी नहीं बदलता कुछ भीपुरूष होने का या स्त्री होने काअंतर तो रहता ही हमेशाबड़ा आसान है मुझे…
प्रेम प्रेम की यादों में डूबी स्त्री नेप्रेम की बारिश में डूबते हुए पूछा खुद सेक्या चाहती हो तुम मुझ सेबारिश सिहर सिहर गयीप्रेम के खुले आकाश में विचरती स्त्री…
अकेला एक ख़ामोशी, तूफ़ान के बाद कीसाक्षी बनी चुप्पी से सराबोर दीवारेंमाथे की तनी हुई नसेंऔर आँखों की बहनें की रफ़्तारसब कुछ तहस नहस साकाश कि कोई समझ पातानितान्त अकेलापन…
शत सिरून घूमती रही मैं सारे शहर मेंमैंने देखा ओपेरा के पास लोगों का हुजूमदेख आई मैं काली झील का कोनादूर से देखा मैंने चमकते अरारात कोसफ़ेद बर्फ़ के साथ…
कुलबुलाहट सोचती हूँ कि हिस्सा बन जाऊँइस अंजाने देश कापर लोगों की अजनबी आँखेंसर्द चाबुक सी लगती हैं मेरी देह परफिर सोचती हूँ कि दरिया बन जाऊँबहती रहूँ यहाँ की…
प्रवासी आभास ख़्बाव आजकल रातों में खूब डराते हैंबर्फ़ की चादर है और हम सर्द हो जाते हैदूर तलक चुप्पी है सन्नाटा है सफ़ेद चादर कासपने है किबस ख़ामोशी से…
अनीता वर्मा समीक्षक व स्तंभकार अनीता वर्मा ना केवल प्रिण्ट मीडिया बल्कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से भी जुड़ी हैं। यू- ट्यूब पर पुस्तक समीक्षा की इनकी जहां कई वीडियो हैं वही…