Author: वैश्विक हिंदी परिवार

ई-मुलाकात@फेसबुक.कॉम – (डायरी अंश)

ई-मुलाकात@फेसबुक.कॉम – अलका सिन्हा 20 अगस्त, 2013 याद नहीं रखा तो भूल भी नहीं पाई कि आज की ही तारीख को रात नौ बजे का समय मुलाकात के लिए तय…

बेइन्तहा मुहब्बत – (कविता)

बेइन्तहा मुहब्बत सच है, मैंने किया है तुमसे अटूट प्रेमबेइन्तहा मुहब्बतले ली है दुनिया भर से लड़ाईपर जुनून ही न हुआ तो मुहब्बत कैसीसच है, मैंने दीवानावार चाहा है तुम्हें।…

रूहानी रात और उसके बाद – (डायरी अंश)

रूहानी रात और उसके बाद – अलका सिन्हा 03 सितंबर, 2008 21 अगस्त से 31 अगस्त, 2008 तक यूके हिंदी समिति और नेहरू सेंटर, लंदन द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन…

भंडारघर – (कविता)

भंडारघर पहले के गांवों में हुआ करते थेभंडारघर।भरे रहते थे अन्न से, धान से कलसेडगरे में धरे रहते थेआलू और प्याज़गेहूं-चावल के बोरेऔर भूस की ढेरी मेंपकते हुए आम।नई बहुरिया…

बहुत मुश्किल है – (कविता)

बहुत मुश्किल है बहुत मुश्किल हैरंगों से भरे कैनवास परसफ़ेद चुप्पी के रंग को उकेरनातमाम उम्र जो रंग भरती रही जीवन मेंउस मॉं को सफ़ेद चादर में लपेटनाया अपनी ही…

हमें रास आ गई है – (कविता)

हमें रास आ गई है कभी क़िस्सागोईकभी सड़ककभी रसोईकभी बतकहीकभी अनकहीकभी यूँ ही भटकनाकभी बिन बात अटकनाकभी किताबों की बातेंकभी बेबाक़ मुलाक़ातेंकभी ईद कभी तीजकभी इक दूजे पर खीजकभी लड़ना…

स्त्री होना… – (कविता)

स्त्री होना… मेरी ना उसे स्वीकार नहीं थीमेरी हाँ भी होती तो भी नहीं बदलता कुछ भीपुरूष होने का या स्त्री होने काअंतर तो रहता ही हमेशाबड़ा आसान है मुझे…

प्रेम – (कविता)

प्रेम प्रेम की यादों में डूबी स्त्री नेप्रेम की बारिश में डूबते हुए पूछा खुद सेक्या चाहती हो तुम मुझ सेबारिश सिहर सिहर गयीप्रेम के खुले आकाश में विचरती स्त्री…

अकेला – (कविता)

अकेला एक ख़ामोशी, तूफ़ान के बाद कीसाक्षी बनी चुप्पी से सराबोर दीवारेंमाथे की तनी हुई नसेंऔर आँखों की बहनें की रफ़्तारसब कुछ तहस नहस साकाश कि कोई समझ पातानितान्त अकेलापन…

शत सिरून – (कविता)

शत सिरून घूमती रही मैं सारे शहर मेंमैंने देखा ओपेरा के पास लोगों का हुजूमदेख आई मैं काली झील का कोनादूर से देखा मैंने चमकते अरारात कोसफ़ेद बर्फ़ के साथ…

कुलबुलाहट – (कविता)

कुलबुलाहट सोचती हूँ कि हिस्सा बन जाऊँइस अंजाने देश कापर लोगों की अजनबी आँखेंसर्द चाबुक सी लगती हैं मेरी देह परफिर सोचती हूँ कि दरिया बन जाऊँबहती रहूँ यहाँ की…

प्रवासी आभास – (कविता)

प्रवासी आभास ख़्बाव आजकल रातों में खूब डराते हैंबर्फ़ की चादर है और हम सर्द हो जाते हैदूर तलक चुप्पी है सन्नाटा है सफ़ेद चादर कासपने है किबस ख़ामोशी से…

अनीता वर्मा – (परिचय)

अनीता वर्मा समीक्षक व स्तंभकार अनीता वर्मा ना केवल प्रिण्ट मीडिया बल्कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से भी जुड़ी हैं। यू- ट्यूब पर पुस्तक समीक्षा की इनकी जहां कई वीडियो हैं वही…

बौन्जाई – (कविता)

बौन्जाई कद्दावर वृक्ष की जड़ गमले में लगानासच-सच बतलानाकैसी चतुराई हैऔर जो ये थोड़ी-सी जमीन मेंपीपल बरगद जैसी छतनार सी पनप आई हैये तो एक औरत हैतुम कहते हो बौन्जाई…

धिनाधिन…धिन… धिनाधिन… – (कहानी)

धिनाधिन…धिन… धिनाधिन… -अलका सिन्हा हल्की बरसात के बाद मौसम सुहावना हो गया था। रास्ते में बिछे सुनहले पत्तों से आती चर्र- मर्र की आवाज अस्फुट-सी कुछ कह रही थी जो…

जन्मदिन मुबारक – (कहानी)

जन्मदिन मुबारक – अलका सिन्हा बगल के कमरे से उठती हुई दबी-दबी हंसी की आवाज उसके कमरे से टकरा रही है। ये हंसी है या चूड़ियों की खनक! पता नहीं,…

मनुष्य की आँख – (लोक कथा)

मनुष्य की आँख मूल भाषा : अर्मेनियन लेखक : नार दोस अनुवादक : गायाने आग़ामालयान एक बार पुराने ज़माने में एक ग़रीब आदमी को कोई चीज़ मिली। चीज़ नरम, गोल…

चांदनी चौक की जुबानी – (कहानी)

चांदनी चौक की जुबानी -अलका सिन्हा बहुत अच्छा गाती हैं आप!”मैंने कहा तो वान्या मुस्करा दी, ”धन्यवाद, मुझे संगीत बहुत प्रिय है।” अबकी बार मैं हंस पड़ी। विदेशी मूल का…

अर्मेनियन कवि वाहान तेरयान की कविताएँ

अर्मेनियन कवि वाहान तेरयान की कविताएँ अलविदा तुम चले जाते हो – पता नहीं कहाँ,चुप और उदास,एक विनम्र पीले सितारे की तरह। मैं चला जाता हूँ अकेला-उदासअसामयिकफूल से गिरती हुई…

रिहाई – (कहानी)

रिहाई –अलका सिन्हा उम्रकैद की लंबी सजा को तेरह साल में निबटा कर आज वह अपने घर के सामने खड़ा था। टकटकी लगाए वह देर तक उस दरवाजे को घूरता…

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