संवेदनशील विश्वास – (कविता)
डॉ. इंगीता चड्ढा (ठक्कर), ऑस्ट्रेलिया संवेदनशील विश्वास ना जाने कितनी बार पूछा होगा,क्या हाल-चाल हैं आपके?चलो माना कि जब सुनाने लगे हम हाले-दिल,कर चले तुम — सुनकर भी अनसुना।कह देने…
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डॉ. इंगीता चड्ढा (ठक्कर), ऑस्ट्रेलिया संवेदनशील विश्वास ना जाने कितनी बार पूछा होगा,क्या हाल-चाल हैं आपके?चलो माना कि जब सुनाने लगे हम हाले-दिल,कर चले तुम — सुनकर भी अनसुना।कह देने…
डॉ. इंगीता चड्ढा (ठक्कर), ऑस्ट्रेलिया हिसाब चलो करते हैं हिसाब,वो छोटी-छोटी ख़ुशियों का,तुमसे की हुई बातों में लिपटी हुई ज़िंदगी का।ये फ़ासले, ये दूरियाँ,ये बेवजह रूठना,गुज़ार देना वक्त,सिर्फ़ ये तय…
डॉ. इंगीता चड्ढा (ठक्कर), ऑस्ट्रेलिया हम फिर मिलेंगे… सुनिए ना,कोशिश अब भी करती हूँ,आपका हाथ थामने की,दिल की गहराइयों मेंअब भी बसा है कहीं आपका वजूद।बिस्तर की सिलवटों में ढूंढती…
डॉ. इंगीता चड्ढा (ठक्कर), ऑस्ट्रेलिया मैं एक ऐसा पौधा सिंच रही हूँ… मैं एक ऐसा पौधा सिंच रही हूँ,जिसकी समझदारी हर ग़लतफ़हमी से मुक्त,हर भ्रम से आज़ाद है।मैं एक ऐसा…
डॉ. इंगीता चड्ढा (ठक्कर) जन्म: सूरत (भारत)शिक्षा: एमबीबीएस, एम.डी. (प्रसूति एवं स्त्री रोग)वर्तमान नागरिकता: ऑस्ट्रेलियाई नागरिक। डॉ. इंगीता चड्ढा एक अनुभवी स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने चिकित्सा के साथ-साथ रचनात्मक…
बिन मोबाइल के दिन हमने भी की बचपन में मस्तीकलम-दवात भी थीं बड़ी सस्ती। रात में लालटेन या लैंप जलाकरहाथ से मच्छर मार-मार करतैयारी इम्तहान की करते थेवह दिन बिन…
गुल्लक मन में कहीं छिपे विहंगचहक उठे फिर आज। बचपन की उन यादों मेंछिपे हैं अनगिन राजउस गुल्लक के सिक्केखनक उठे फिर आज। मिट्टी की गुल्लक थीअधिक नहीं था दामएक…
कचनार खेत बीच या खेत किनारेवृक्ष लगे कचनार केकोमल फूल लगे हर डालीरूप रखा संवार के। हरा वसन पहन झूमतेपात सभी और हर डालीप्रति दिन इनको पानी देताबगिया का बूढ़ा…
कनेर का वन कुछ दूर यहाँ से हटकरएक कनेर का वन हैजिसके सुरभित कानन मेंअलि करते कुछ गुंजन हैं l उस वन के झुरमुट मेंकुछ नन्ही परियाँ रहती हैंदिन भर…
मेरे बचपन की मस्ती बात करें अपने बचपन की तोवह अलग तरह की मस्ती थी। घर से स्कूल को आना-जानाघर आकर होमवर्क करनाअगले दिन टीचर को दिखानावरना डांट खूब खानी…
बिन मोबाइल के दिन हमने भी करी बचपन में मस्तीकलम दवात भी थीं बड़ी सस्ती। रात में लालटेन या लैंप जलाकरहाथ से मच्छर मार-मार करतैयारी इम्तहान की करते थेवह दिन…
जी लो, जी लो यह समय धोखेबाज है। जी लो, जी लो, जी भरकेजो पास तुम्हारे आज हैकल क्या होने वाला हैउसका कुछ भी पता नहीं यह समय धोखेबाज है।…
चमेली क्यारी में अम्मा ने जबपौधा एक लगायाखिलीं चमेली की कलियाँऔर फूल लगे मुसकाने। सूरज की किरनें बिखरींतो झूम उठी हर डालीघूँघट से झाँक-झाँकहर कली लगी इतराने। चाँदी जैसा गात…
शन्नो अग्रवाल जन्म : 9 दिसंबर,1947; पीलीभीत, उत्तर प्रदेश। लंदन, ब्रिटेन में लंबे समय तक रहना. वर्त्तमान में ऑस्ट्रेलिया में रह रही हैं। दो काव्य संग्रह ‘रोशनदान’ और ‘ओस’ नाम…
ना हो उदास, ना हो निराश प्रश्न रह गए, गायब उत्तरभाग चला लंपट, छूमंतरबिखर गई थोथी भावुकताभीतर थी केवल कामुकताऐसा कर कुछ, समेट अपनेदर्द के धागे, चले तलाशना हो उदास,…
भूत जो अब घट गया है* ज्ञान उपनिषद का देते, ऋषि-मुनि गूढ़ और गंभीरविज्ञान का प्रयोग चलता स्क्रीन पर फोटोन की लकीर कान्ह को माखन खिलाया , बेबी फूड के…
धनुष-बाण तेरे घुस आते बौछारें नयनो से निकलीधनुष-बाण तेरे घुस आते। मैं ग्वाला अज्ञानी ठहराकिशन समझ तुम आई राधासपनीली आँखों में तेरीखुद को पाता आधा आधाहाथ बढ़ाने के क्षण मुझसे,फिसले…
आनन्द ही आनन्द ले ले कर चटखारेस्वाद ग्रंथि तृप्त हो, मौन रसना अनमनीआनन्द ही आनन्द कुंभकर्णी नींद हो,खर्राटे भर लेते तोड़ते खाट अपनाउपदेश बाँटो, माल लो,सुन्दरी का साथ हो भंग…
चलते भीतर अंतरद्वंद्व भार लिए मन में क्यों मानवशोक, दुख अनुलग्नचलते भीतर अंतरद्वंद्वक्यों न हो उद्विग्न।अंधड़ आई रेत उड़ चली.सावन-भादो मेंचंचल बहता पानी ठहरागंदे गड्ढों मेंकाम नहीं कुछ, उबकाई में,सुस्त…
रूह में लपेट कर धुंआ-धुआं हो रहा श्मशान की ओरपर पालकी में बैठी दुल्हनअपने आंचल में सपने संजोएमृगनयनों से अपने पुरूष को निहारतीएक बर्फ़ीली आँधी से अनजानरसवन्ती उमंगों से भरीपपीहे…