Category: यूरोप

यूरोप

ज़िंदगी की दौड़ – (कविता)

ज़िंदगी की दौड़ झुरमुट की ओट में खड़े होकरआँखें बंद करने सेरात नहीं होतीऔर न हीबिजली के बल्ब के सामने खड़े होकरदिन की अनुभूति होती हैदोनों ही नकारात्मक सत्य है।…

ललक – (कविता)

ललक ज़िंदगी एक दौड़ है-बैसाखी पर चलने की लाचारी नहींन हीं घुटनों के बलचलने का नाम है-जिसे वक़्त अपने डंडों से हाँकता रहेऔर प्रतिस्पर्धादौड़ की चाहत लिएपिछड़ जाए। तेज़ चलना…

एहसान – (कविता)

एहसान ज़िंदगीतुमसे कोई शिक़ायत नहीं !एहसानमंद हूँक्योंकि,कम से कममरने तो नहीं दिया तुमने !जिलाए ही रखा-साँसों में शराब की तरह,आँखों में ख़्वाब की तरह,ज़ख़्मों में नासूर की तरह,दुनिया में दस्तूर…

आयाम – (कविता)

आयाम आधुनिकता की दौड़ मेंसारे आयाम सरेआम बदलते जा रहे हैं-व्यक्ति का चारित्रिक मूल्य,पीढ़ियों का अन्तर्द्वंद्व,जातीयता का समीकरण,प्रांतीय विखंडित व्यवहारया राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय बाज़ारूपन। कौन ज़िम्मेदार है इनका?अतीत का पिछड़ापन,वर्त्तमान की तेज़…

ज़िंदगी का गणित – (कविता)

ज़िंदगी का गणित ज़िंदगी के गणित मेंनियमित लगे रहनाकितना परिणामदायक है-यह कहना, निस्संदेह मुश्किल है।इन ‘पहाड़ों’ का दैनिक जीवन में इस्तेमालतभी वाजिब है जब-दिल को जोड़ सकेदुश्मनी घटा सकेसुख को…

ज़िंदगी के पहलू – (कविता)

ज़िंदगी के पहलू i)ज़िंदगी एक बंद किताब हैजिसे खोलने की कोशिश तब सही हैजब इसके पन्नों को दोनों तरफ़ से पढा जाएमहत्त्वपूर्ण पहलुओं को रेखांकित किया जाएऔर अतीत के अवांछित…

किताब ज़िंदगी की – (कविता)

किताब ज़िंदगी की ज़िंदगी सिर्फ़काग़ज़ों पर जीना नहीं होताउसके लिएव्यावहारिक ज्ञान औररेखांकित प्रयास की ज़रूरत होती है तालीम की ईंटशुरुआती नींव तो दे सकती है;पर समुचित मज़बूत ढाँचाऔर कुशलता की…

कृष्ण कन्हैया

कृष्ण कन्हैया डॉ. कृष्ण कन्हैया जन्म स्थान :– पटना, बिहार, भारत शिक्षा :– एम.बी .बी .एस .(आनर्स), एम. एस.(सर्जरी), एफ. आर. सी. एस.( एडिनबरा), एम. आर. सी. जी. पी. (लंडन),…

परछाइयाँ – (कविता)

परछाइयाँ नापती पसीने से,तर बूंदें, कहीं शरीर पर,अनायास चल पड़़ती धार,सूरज ताप से,भूख के संताप से,तपती देह को,घटती, बढ़ती परछाइयाँ। सुबह उठ,कर, झाड़ साफ, झोंपड़ी,राख सनी रुखी रोटी,मिर्ची की महकलहसुन…

लिंगभेद : समझ प्रमाद – (कविता)

लिंगभेद : समझ प्रमाद है समझ ही का केवल प्रमादलिंगभेद, नहीं है अभेद,दोनों की शक्ति मिल,बनता जीवन अभिषेक। प्रसव पीड़ा की सुन किलकारी,एक ही जिज्ञासा, मन की भारी,लिंग की है…

रामा तक्षक

रामा तक्षक रामा तक्षक जन्म : सन् 1962 में, जाट बहरोड़, जिला अलवर, राजस्थान । शिक्षा : स्नातकोत्तर हिन्दी साहित्य एवम् अँग्रेजी साहित्य राजस्थान, विश्वविद्यालय जयपुर। डॉक्टरेट इन हर्बल मेडिसिन…

समग्र सोच – (कविता)

समग्र सोच अक्षरों में शब्दों को,वाक्यों में पदों को;ऊंचाइयों में कदों को,पाबंदियों में हदों को,देखने के लिए समग्र सोच चाहिए। पेड़ों में वन को,अंगों में तन को;विचारों में मन को,चाँद-तारों…

लाला रूख़ – (कविता)

लाला रूख़ लाला रूख़ में बैठ भारत सेजब विदा हो गये तुमन समझना कभी किएक दूसरे से जुदा हो गये हम एक ही माँ की दो संतानें हैं हमएक ही…

खोया शहर – (कविता)

खोया शहर सालो बाद अपने शहर आई हूँ,बहुत से सपने और उम्मीदेंसमेट मन में भर कर लाई हूँढूँढ रही हूँ वो आँगनजहाँ खेलते बीता मेरा बचपन खोज रही हूँ माँ…

गुड़िया तुम्हारी – (कविता)

गुड़िया तुम्हारी बाबा मैं पली भले ही माँ की कोख मेंपर बढ़ी हर पल आपकी सोच मेंआप ही मेरा पहला प्यारआप ही मेरा छोटा-सा संसारआपकी ही अंगुली पकड़ करपहला कदम…

बस्ता – (कविता)

बस्ता हर एक स्त्री की पीठपर एक बस्ता हैजिसमें छिपे हैंउसके दुख-दर्दऔर चिंताएँकभी कभीन चाहते हुए भीदर्द को न दिखाते हुए भी,सब छिपाते हुए भीहर एक स्त्री कोये ढोना पड़ता…

तुम हंसती बहुत हो – (कविता)

तुम हंसती बहुत हो तुम हंसती बहुत हो,क्या अपनी उदासी कोइसके पीछे छिपाती हो?ये जो गहरा काजलतुमने आँखों में है लगायाकितने ही आंसुओं कोइनमें है छिपाया? खुद को मशरूफ रखनेका…

बचपन – (कविता)

बचपन ज़माना मुझे कुछ इस तरहइस तरह जीना सीखा रहा हैबाज़ार में बचपन को बेचभविष्य के सपने बुनना सीखा रहा है गणित ज़िंदगी कापाठशाला में नहींखुद दुनिया के बाज़ारसे सीख…

सवाल – (कविता)

सवाल एक सवाल हमेशामेरे मन में घर कर रहा हैहैरान हूँ, परेशान हूँलोग कहते हैं, हम इंसान हैंअगर हम इंसान हैसुनाई क्यों नहीं देतीचीखें हमें घायलों कीमहसूस होता दर्द क्यों…

परदेस – (कविता)

परदेस न तीज है, न त्यौहार हैपरदेस में लगता सूनासब संसार हैन सावन के झूलेन फूलों की बहार हैन आम की डाली परबैठ कोयल गाती मल्हार हैन लगते यहाँ तीजमेले…

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