प्रवासी लेखन में ‘नौसटैलजिया’
दिव्या माथुर समय तेजी से बदल रहा है, जाहिर है कि हमारे साहित्य में भी यह बदलाव, व्याकुलता और बेचैनी छलक रही है जो हिन्दी साहित्य को अपनी मौलिकता से…
हिंदी का वैश्विक मंच
दिव्या माथुर समय तेजी से बदल रहा है, जाहिर है कि हमारे साहित्य में भी यह बदलाव, व्याकुलता और बेचैनी छलक रही है जो हिन्दी साहित्य को अपनी मौलिकता से…
लोरी निंदिया बनके तेरी पलकों में छिप जाऊंतू जागे मैं जागूं, तू सोए सो जाऊंकाली रात की अलकें भारी भारीतेरी आँखें हैं कारी कजरारीभोर किरण बन आऊंतुझको चूमूं जगाऊँतू जागे…
आत्महत्या के बीज सुना हैभारत बड़ी तरक्की कर रहा है जिसे देखो ऊपर, ऊपर और ऊपर हीचढ़ रहा हैसुना है किसान अब अपने बीज नहीं बो सकते न ही बांट…
मैं चील हूँ मैं एक चील हूँजो एक पीड़ादायी मृत्यु से जीत आईघायल हुई, हाँ, बेहद घायल,किन्तु मैंने पुन: सीखे कौशलऔर देखो न, मैं कितनी तैयार हूँअब तो मृत्यु के…
कढ़ी आज सुबह मैंने कढ़ी बनाईछोटी छोटी गोल मटोल पकौड़ियांयूं खदक रही थीं पतीले में ज्यूं फुदकते थे बच्चे बरसात से भीगे आंगन मेंऐसा आल्हादित था मन कि सारे मुहल्ले…
दस्तक न सुने तो कोई क्या कीजेदस्तक देने में हर्ज़ है क्याहम खुशी खुशी भुगतेंगे इसेजो मिट जाए वो मर्ज़ है क्यादिल माँगा, जां हमने दीये छोटा मोटा क़र्ज़ है…
रचनात्मक अवरोध (writer’s block) बाहर हल्कीपर मन में भारी बारिश हो रही हैकागज़ की नाव पर सवार शब्दतेज़ी से बहे जा रहे हैंमैं उन्हें बचाने के लिएभाग रही हूँ छपाछपनाव…
शब्दकोष शब्दकोष वह अद्बभुत था, ‘युद्ध’ शब्द उसमें न था‘शत्रु’ का था न अता-पता, ‘बारूद’ बेचारा क्या करता’घृणा’ न थी न ‘द्वेष’ वहाँ, ‘आहें’ थीं न ‘बीमारी’न ‘आँसू’ थे न…
मेरी खामोशी मेरी खामोशीएक गर्भाशय हैजिसमें पनप रहा हैतुम्हारा झूठएक दिन जनेगी येतुम्हारी अपराध भावना कोमैं जानती हूँ कितुम साफ़ नकार जाओगेइससे अपना रिश्तायदि मुकर न भी पाये तोउसे किसी…
लौट आई हूँ लन्दन लौट आई हूँ लन्दनछोड़ के वृन्दावनसाफ़-सुथरी पक्की सड़क परहरे और घने दरख्तों से घिरेएक बेधूल और सुसज्जित घर मेंजहाँ गर्मी में पसीना नहींन ही सर्दी में…
विस्मृति के द्वार: बाबा-अम्मा और मैं –दिव्या माथुर ये संस्मरण 18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत के हैं। पड़दादा और पड़दादी को मैंने केवल फ़ोटोज़ में ही…
स्वाति शुरू से ही जानती थी कि इवा उसकी अपनी माँ नहीं है। मगर जबसे तेरह की हुई तो उसके अवचेतन मस्तिष्क में सुप्त पड़े कुछ प्रश्न नई चेतना पा…
पतझड़ जीवन की साँझ वेला मेंदेह के वृक्ष सेभूरे – पीले पत्तों साकुछ – कुछ झरने लगा ! आँखों की रोशनीकम – सी हुईतो श्रवण शक्ति क्षीण अंग – प्रत्यंग…
चलते-चलते जीवन पथ पर,एक नदी के सुंदर तट पर|देखा जो तरुवर की छाया,सुस्ताने को मन हो आया|| कर विचार यह सुंदर उपवन,सुखकर होगा इसमें जीवन|संगी-साथी मीत बनाये,प्रेम भाव के दीप…
जब एकाकी मन घबराए,सूनेपन से जी भर जाये |ले समय कभी उलटे फेरे,हो अंधकार चहुंदिक मेरे|पर चाहूँ “दीप शिखा” पाना,हे! राम मेरे, तब तुम आना || १ || जब थक…
मॉरीशस में हिंदी के स्वरूप को यदि हम जानना चाहते हैं तो इतिहास में झाँके बगैर हम इस दिशा में आगे नहीं बढ़ सकते । जब हम ऐतिहासिक तथ्यों को…