Category: प्रवासी कविता

अंकुश – (कविता)

अंकुश सबका है रक्षकजगती का है वह प्राणदुखों को दूर करता हैवही सुख सागर बनता है…! वही, जो व्याप्त है सर्वत्रवही उत्पत्तिकारक हैसभी में है परमवह श्रेष्ठवही तो शुद्धस्वरूपा है।…

सन्मार्ग – (कविता)

सन्मार्ग हे नाथ, दिखा दो राह मुझे…! जान न पाया इस जगती कोजिसका ओर न छोरमाना इसको मैंने अपनाक्या-क्या दुखद न पायाकेवल अपनी अजानता के-कारण जनम गँवाया। जब से आया…

लिंगभेद : समझ प्रमाद – (कविता)

लिंगभेद : समझ प्रमाद है समझ ही का केवल प्रमादलिंगभेद, नहीं है अभेद,दोनों की शक्ति मिल,बनता जीवन अभिषेक। प्रसव पीड़ा की सुन किलकारी,एक ही जिज्ञासा, मन की भारी,लिंग की है…

वीणावादिनि – (कविता)

वीणावादिनि वीणावादिनि शत-शत नमन!कैसे करूँ वंदना तिहारीमैं अबोध बालक महतारीशरणागत, हे मेरी माते-शरण तिहारी आया हूँ। तुलसी-वाल्या-कालीतेरी कृपा निराली,वही कृपा हे हंसवाहिनीदे अबोध के दुख हर ले। वीणावादिनि! पद्मासना!सुन ले…

प्रवासी भारतीय  तू…! – (कविता)

प्रवासी भारतीय तू…! प्रवासी भारतीय तूअपनी पैतृक जड़ों से यूं जुड़ तूभेड़ बकरी की तरहमत कर अंधानुकरण यूँ..अदम्य साहस, समर्पण, धैर्य सेलिख अपनी नई दास्तां तू..प्रवासी भारतीय तू… किसी भौगोलिक…

नदी – (कविता)

नदी हँस समुद्र ने पूछा यूँमुझसे प्रश्न कई बार-ज्यूँवाह से आह तक ..तूआह से वाह तक.. क्यूँ नदी-धारा-मीठी-सी-तूअपने गीले-मीठे-होठों को यूँक्यूँ नमकीन करने चली आती तू ..? अपने प्रेमी-पर्वत को…

अधूरी  कविता – (कविता)

अधूरी कविता बस एक अधूरी कवितासुनानी है तुम्हें..शब्द -निशब्द सेबोलती खामोशी कोशायद पढ़ सके हम जहां..बस वही एक अधूरी कविता.. ख्वाहिशें पिघलती हुईबढ़ती आंखों की नमीशब्दों की रूह कहींदिल में…

आहिस्ता-आहिस्ता – (कविता)

आहिस्ता-आहिस्ता दर्द के बिस्तर परखामोशी की चादर तानमोहब्बतें चांद का उगनादेखते रहे हम आहिस्ता-आहिस्ता पिघलती हुई ख्वाहिशों कीचांदनी में..तारों ने सूनी सीशहनाई यूँ कहीं बजाई..!सुनते रहे जिसे हम आहिस्ता-आहिस्ता ख्याल…

वह क्यूँ..? – (कविता)

वह क्यूँ..? अजीब कशमकशज़िंदगी की..थी, मंजिल की तलाशमें, मैं कहीं..! तुम क्या मिलेखुद में कहीं खुदतुमको ढूंढते ढूंढते..खुद मे जैसे खुदा ढूंढना हो ऐसेइबादत बन गया…! यूं तो तलाश मेरी…

लम्हा.. लम्हा..! – (कविता)

लम्हा.. लम्हा..! लम्हा-लम्हा यूं कटता रहावक्त हाथों से ज्यूँ फिसलता गया ..! न जाने क्यूँ हमने वक्तको, वक़्त से देकर वक़्तवक़्त से ही यूँ खरीद लिया ..! ऐसी बेची जाने…

मिट्टी – (कविता)

मिट्टी खेलते-खेलते तुम से हीखाते-खाते मिट्टीतुम कब बन गईंसबसे अच्छी दोस्त मेरी..! लिबास पर बिखरीकेशविन्यास पर चिपकीहथेलियों में रमीतो मेरी रूह में कहीं जमी…! जाना कहीं मैंने यूँ हीतुझमें डूबने…

वज्रपात – (कविता)

वज्रपात कल्पनातीत कालातीतसभा में खड़ी सोचरही हूं मैं…हे माँ कुंती !तुमने मुझे क्या से क्याबना डालाकहां से कहां ला डाला..!! ‘बांट लो’ -कहते ही तुमनेमेरा वर्तमान – भविष्यपतनागर्त कर डालातुमने…

बनजारन – (कविता)

बनजारन जीवन-रेगिस्तान मेंमरीचिका-प्रेम ढूढ़नेबनजारन-मैं…रोज़ करती हूं तयरेत-भरा-मीलों सफर …!! टांग-सूरज-बालों मेंटाँक चांद-दुपट्टे मेंनव-यौवन को ढकती, चुनरी सेपसीने से उजागर होते, अधरश्वेत-चांदनी पहन-ओढ़भटकती हूं रात-दिन-कहीं- मैंइस बंजर जमीन पर…!! कभी-कहीं-कब-क्या मैंप्यास-जल-खुद…

बापू के नाम एक खुला पत्र – (कविता)

बापू के नाम एक खुला पत्र विश्व को हिंसा सेमुक्त कराने का बीड़ा उठाया था तुमने।विश्व तो क्या, यहां तो घर में भीशांति-निवास के लाले पड़ गए हैं।अब तो घरेलू…

क्या खोया क्या पाया – (कविता)

क्या खोया क्या पाया माँ के गर्भ की सुरक्षा खोईतो इस दुनिया में जीने काअवसर पाया। बचपन का अल्हड़पनऔर बेफिक्री खोईतो जवानी में कदम रखनेका अहसास पाया। देश खोया,अपनी धरती…

हिसाब ज़िंदगी के – (कविता)

हिसाब ज़िंदगी के बाद मुद्दत तू आया है मेरे आँगन मेंकोई शिकवा नहीं जज़्बात की बातें कर लें मैं तेरी हीर नहीं तू मेरा रांझा न रहाबिकते और काँपते इंसान…

प्रश्नोत्तरी – (कविता)

प्रश्नोत्तरी तेरे प्रश्नों की पंक्ति की तू धूनी समान जल रहा वहाँक्यों व्यस्त यहाँ मेरा जीवन था फाग और मल्हारों में मर गए तरस कर गीत तेरे जब कफन बिनाक्यों…

हमारी तुम्हारी बातें – (कविता)

हमारी तुम्हारी बातें कुछ तुम अपनी कहोकुछ हम अपनी कहेंइसी कहने के सिलसिले मेंकुछ मन का भार हल्का हो। कुछ आंसू तुम्हारे बहेंकुछ आंसू हमारे भी निकलेंइसी तरह मन का…

मैं एक नारी हूँ – (कविता)

मैं एक नारी हूँ नहीं चाहिए मुझे तुम्हारादिया हुआ झूठा ‘स्त्रीधन’ना ही चाहिए मुझे तुम्हाराझूठा दिखावा ‘देवी’ पूजा का।और ना ही लगाव है मुझेतुम्हारे जीवनभर साथ निभानेके झूठे वादों से।…

ख्वाहिश – (कविता)

ख्वाहिश दुनिया की चार दिवारी में बंद हो जाएँयह कभी हमारी ख़्वाहिश नहीं।कुछ कदम साथ चल करतुम्हें मँझधार में छोड़ देंयह हमारी फ़ितरत ही नहीं। दो कदम तुम चलोऔर दो…

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