Category: प्रवासी रचनाकार

कविता बनी – (कविता)

कविता बनी टूटते मूल्योंऔर विश्वासों कीशृंखला में जबखुद की खुद से न बनीकविता बनी कल्पना की उड़ान मेंसपनो के जहान मेंमिट्टी के घरोंदे बनातेजब उँगलियाँ सनीकविता बनी फूलों से गंध…

अगले खम्भे तक का सफ़र – (कविता)

अगले खम्भे तक का सफ़र याद है,तुम और मैंपहाड़ी वाले शहर कीलम्बी, घुमावदार,सड़क परबिना कुछ बोलेहाथ में हाथ डालेबेमतलब, बेपरवाहमीलों चला करते थे,खम्भों को गिना करते थे,और मैं जबचलते चलतेथक…

अनूप भार्गव – (परिचय)

अनूप भार्गव हृदय से कवि और व्यवसाय से कंप्यूटर सलाहकार अनूप भार्गव को भोपाल में हुए दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन में प्रधान मंत्री द्वारा ‘विश्व हिन्दी सम्मान’ से नवाज़ा गया।…

काश कभी ऐसा भी हो – (कविता)

काश कभी ऐसा भी हो काश कभी ऐसा भी होसब नया-नया होआँख खुले सब नया-नया होबस नया-नया होसब नया-नया हो धरती अम्बर चंदा तारेनदियाँ पर्वत और नज़ारेसब में एक उन्माद…

 जीवन – (कविता)

जीवन एक निरंतर खोज है जीवनये मत समझो बोझ है जीवनउठ कर गिरना, गिर कर उठनासुख और दुख का बोध है जीवन किसी मोड़ पर हँसना होगाकुछ राहों पर रोना…

खेल – (कविता)

खेल क्या खेल चल रहा हैएकतरफ़ा चल रहा हैसदियों से चल रहा हैहम सबको छल रहा है किस-किस की करें बातसारी ग़म-ए-हयातशतरंज की बिसातबस खेल चल रहा हैएकतरफ़ा चल रहा…

तुम अथक मुसाफ़िर बढ़े चलो – (कविता)

तुम अथक मुसाफ़िर बढ़े चलो तुम अथक मुसाफ़िर बढ़े चलोहै लम्बा पथ तुम चले चलोहै डगर पथिक दुर्गम लेकिनएक आस लिए तुम चले चलो कोई मौसम बाँध नहीं पाएकोई शौक़…

भूमि – (कविता)

भूमि आओ मिल कर आँसू बोएँइस बंजर ऊसर भूमि मेंकोई पुष्प शांति का खिल जाएशायद फिर अपनी भूमि में ये किसने बोई है नफ़रतकि बंदूक़ों की फसल उगीगोली पर गोली…

सम्पूर्ण होना कल्पना है – (कविता)

सम्पूर्ण होना कल्पना है सम्पूर्ण होना कल्पना हैइक अधूरा ख़्वाब हैसच तो ये है हम सभीआधे-अधूरे लोग हैंपूरे की बस चाह मेंहैं भागते रहते सदाथक चुके हैं हम सभीआधे-अधूरे लोग…

सोने वाले जाग ज़रा – (कविता)

सोने वाले जाग ज़रा जंगल जंगल आग लगी हैबस्ती बस्ती उठे धुआँमौसम तेवर बदल रहा हैसोने वाले जाग ज़रा कब से नोच रहा क़ुदरत कोकबसे धरती रौंदे तूआने वालों को…

जीवन संग्राम – (कविता)

जीवन संग्राम जीवन बड़ा संग्राम हैकभी जीत है कभी हार हैकभी सुख यहाँ कभी दुःख यहाँकोई डूबा तो कोई पार हैइस बार की तुम हार काइतना ना मातम करोपंख आशा…

है याद मुझे – (कविता)

है याद मुझे है याद मुझे वो गलियारावो इक आँगन, वो चौबारावो चंचल बहती शोख़ नदीमादक समीर, वो वन प्यारा वहाँ ऊँचे थे कुछ पेड़ बहुतजो नभ को छिपा ही…

 मैं आया हूँ – (कविता)

मैं आया हूँ कुछ मायूसों की बस्ती मेंमैं ख़्वाब बेचने आया हूँउन मुर्दों का जो ज़िंदा हैंमैं दिल बहलाने आया हूँ बेनूर निगाहों की ख़ातिरले कर प्रकाश मैं आया हूँमैं…

अजय त्रिपाठी – (परिचय)

अजय त्रिपाठी एमबीबीएस; एमएस; एफआरसीएस (जीएल); एफआरसीएस (एड); एफआरसीओफ्थकंसल्टेंट नेत्र रोग विशेषज्ञ, विशेष रुचि के साथओकुलोप्लास्टिक और फेशियल एस्थेटिक सर्जरीरसेल्स हॉल अस्पताल, डडली, यू.के.मानद वरिष्ठ नैदानिक व्याख्याताबर्मिंघम विश्वविद्यालयनिदेशक आइज़ एंड…

सुनिए – (कविता)

सुनिए कोई सुने तो मैं सुनाऊँवो सब कुछ जो सुनाने वाला हैपर आजकल हर कोईकेवल सुना रहा हैसुन नहीं रहा है कोईआम आदमी आजकलव्यस्त हैसुधारने मेंकौन सुधर रहा है उसके…

मक्खी – (कविता)

मक्खी मक्खी जब उड़ जाती हैतो कहाँ जाती हैकहाँ जाती हैअपने घर जाती हैअपने घर जाती हैपर, बीच रस्ते में उसे गुड़ की याद आती हैउसे गुड़ की याद आती…

कील – (कविता)

कील मैं यदि जूता होतातो होता तुम्हारे पाँव मेंपरंतु मैं जूता नहींकील हूँशुक्र मनाओमैं नहीं हूँउस जूते मेंजो है तुम्हारे पाँव में! ***** – निखिल कौशिक

 बादल- धरती – (कविता)

बादल- धरती बादल हैऔर पेड़ भीधरती हैऔर पाँव भी हैधरती परकहाँ बरसेगाऔर कौन सा बादलकब टूटेगाऔर कौन सा फलफटेगी धरतीअचानकऔर किस पाँव तलेकौन जाने! ***** – निखिल कौशिक

जान पहचान – (कविता)

जान पहचान मैं बहुत लोगो को जानता हूँजिनमे से अधिकांश लोग भी बहुत लोगों को जानते हैंकुछ जानते हैं दर्जनों कोकुछ पहचानते हैं सैंकड़ो कोइस तरह हज़ार, लाख करोड़ लोगों…

इतने – (कविता)

इतने इतने- इतने सारे लोगइतना- इतना कुछ कर सकते हैंपरंतुइतना- इतना भी नहीं करतेकी सुन सकें इतनी- इतनी सी बाततभी तोइतने- इतने हो सकते हैंपर इतने- इतने से होकर रह…

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