तरुण कुमार द्वारा ‘रिश्ते : जय वर्मा की काव्य-कृति’ की समीक्षा – (पुस्तक-समीक्षा)
तरुण कुमार द्वारा ‘रिश्ते : जय वर्मा की काव्य-कृति’ की समीक्षा मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो समाज में रहते हुए अपने रिश्ते और कर्तव्यों का निर्वहन करता है। उसके…
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तरुण कुमार द्वारा ‘रिश्ते : जय वर्मा की काव्य-कृति’ की समीक्षा मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो समाज में रहते हुए अपने रिश्ते और कर्तव्यों का निर्वहन करता है। उसके…
मैं यमराज नहीं हूँ!! – हर्ष वर्धन गोयल (सिंगापुर) मुझे सिंगापुर में आए अभी कुछ ही वर्ष व्यतीत हुए थे, यहाँ मित्रों और संबंधियों की रिक्तता का आभाव वास्तविक रूप…
काले देवता – हर्ष वर्धन गोयल (सिंगापुर) यह उन दिनों की बात है जब मैं मलेशिया में कार्यरत था, मुझे अपने कार्यालय के द्वारा सायबर जाया में एक परियोजना पर…
ग़ज़ल – 1 चल रहा आज भी वो खेल पुराने वाला,हर मुलाज़िम ही निकलता है खज़ाने वाला। हैसियत देख के ही दोस्त बनाने वाला,चढ़ गया उस पे भी अब रंग…
ना हो उदास, ना हो निराश प्रश्न रह गए, गायब उत्तरभाग चला लंपट, छूमंतरबिखर गई थोथी भावुकताभीतर थी केवल कामुकताऐसा कर कुछ, समेट अपनेदर्द के धागे, चले तलाशना हो उदास,…
भूत जो अब घट गया है* ज्ञान उपनिषद का देते, ऋषि-मुनि गूढ़ और गंभीरविज्ञान का प्रयोग चलता स्क्रीन पर फोटोन की लकीर कान्ह को माखन खिलाया , बेबी फूड के…
धनुष-बाण तेरे घुस आते बौछारें नयनो से निकलीधनुष-बाण तेरे घुस आते। मैं ग्वाला अज्ञानी ठहराकिशन समझ तुम आई राधासपनीली आँखों में तेरीखुद को पाता आधा आधाहाथ बढ़ाने के क्षण मुझसे,फिसले…
आनन्द ही आनन्द ले ले कर चटखारेस्वाद ग्रंथि तृप्त हो, मौन रसना अनमनीआनन्द ही आनन्द कुंभकर्णी नींद हो,खर्राटे भर लेते तोड़ते खाट अपनाउपदेश बाँटो, माल लो,सुन्दरी का साथ हो भंग…
चलते भीतर अंतरद्वंद्व भार लिए मन में क्यों मानवशोक, दुख अनुलग्नचलते भीतर अंतरद्वंद्वक्यों न हो उद्विग्न।अंधड़ आई रेत उड़ चली.सावन-भादो मेंचंचल बहता पानी ठहरागंदे गड्ढों मेंकाम नहीं कुछ, उबकाई में,सुस्त…
रूह में लपेट कर धुंआ-धुआं हो रहा श्मशान की ओरपर पालकी में बैठी दुल्हनअपने आंचल में सपने संजोएमृगनयनों से अपने पुरूष को निहारतीएक बर्फ़ीली आँधी से अनजानरसवन्ती उमंगों से भरीपपीहे…
पगलाई आँखें ढूंढती पगडंडी के पदचिन्ह से भीक्षितिज देखा हर जगहपगलाई आँखें ढूंढती अपने पिया को हर जगह। फूल सूंघे, छुअन भोगीसपन का वह घरकचनार की हर डाल लिपटी राह…
चिढ़ाते तुम! आचमन भर, दे रहे हो, नदी में सेचिढ़ाते तुम!महामायानींद में कुछ बाँध लेतीमधुर सपनो की सुगंधि, प्यास बनतीबाग महके फूल पाया, सिकुड़ता सा;चिढ़ाते तुम! भूख की चिंता नहींमैं…
कविराज बने फिरते हो लाट साहब की तरह रोजकविराज बने फिरते होहवा निकल जाएगीभंडाफोड़ करूंगी याद रहे।माथापच्ची कौन करे,तुम बहस किसे जिताते होकवि-सम्मेलन में जातेया कहाँ समय बिताते होजासूसी से…
चल पड़ी है वेदना खुशी की राहें भटकती मोड़ पर, हर राह परआँसुओं में डूबती लो चल पड़ी है वेदना नैन जलते थे अंधेरी व्यथाओं की आग परसंग काजल देख…
उलझा दिए हैं किस तरह जिन्दगी नेमायने उलझा दिए हैं किस तरहतिमिर नेकिरणों के पग उलझा दिए हैं किस तरह मंथन हुआ, क्षीर सागर,हिलोरें ले कह रहाविष पयोधर साथ मिल…
सूची उलझा दिए हैं किस तरहचल पड़ी है वेदनाकविराज बने फिरते होचिढ़ाते तुम!पगलाई आँखें ढूंढतीरूह में लपेट करआनंद ही आनंदधनुष-बाण तेरे घुस आते।भूत जो अब घट गया हैना हो उदास,…
चंद्रयान ने खिड़की खोली इंद्रधनुष की किरणो से चंद्रयान की हँसी ठिठोली। उड़ान का फर्राटा ऐसा,ठुमकों पर चलती हो गोलीमामा देखेंगे कठपुतलीनाचे पहनी घाघर चोलीकत्थक गरबा और भाँगड़ा, नृत्य की…
ऐल सैल्वाडौर का यात्रा-संस्मरण – विजय विक्रान्त बात सन 1967 की है। मुझे कैनेडा में आये हुये अभी दो वर्ष ही हुये थे और मैं मॉन्ट्रेयाल इन्जिनियरिंग कम्पनी (Monenco) मॉन्ट्रेयाल…
अजनबी शहर में – वंदना मुकेश मौसम आज फिर बेहद उदास था। सूरज देवता रजाई में ऐसे दुबके थे कि पूरा सप्ताह बीत गया…। यहाँ सुबह लगभग आठ बजे तक…
ध्वनियों का संसार क्या तुमने कभी विचार कियाशब्दों को कोई नाम दिया? आवाहन है तो हुंकारढोल-नगाडे की टंकार ।पीड़ा में निकले सिसकारी,आनंदित मन किलकारी। पंछी बोलें चहचह चुक-चुकभँवरे करता गुनगुन…