प्रगीत कुँअर की ग़ज़लें
ग़ज़ल -1 देर थोड़ी क्या हुई पर फड़फड़ाने में हमेंआसमाँ ही लग गया नीचे गिराने में हमें एक मुश्किल को ज़रा सुलझा दिया हमने तभीमुश्किलें सब लग गयीं हैं आज़माने…
हिंदी का वैश्विक मंच
ग़ज़ल -1 देर थोड़ी क्या हुई पर फड़फड़ाने में हमेंआसमाँ ही लग गया नीचे गिराने में हमें एक मुश्किल को ज़रा सुलझा दिया हमने तभीमुश्किलें सब लग गयीं हैं आज़माने…
प्रगीत कुँअर पिता का नाम : डॉ० कुँअर बेचैन जन्म : ग़ाज़ियाबाद उ०प्र० निवास स्थान : ऑस्ट्रेलिया (सिडनी) शिक्षा : बी० कॉम, सी० ए०, आई० सी० डब्ल्यू ० ए०, एल०…
खत लिखने का वो ज़माना चला गया सुकुन से बैठ कर खत लिखने का, वो ज़माना चला गया;चलता था कुछ धीरे, मलाल है, वो वक़्त पुराना चला गया। तेज रफ़्तार…
आईना हमसे उम्र का हिसाब मांगता है रहा नहीं जो वक़्त, एक लम्हा कभी काबू में हमारे,आईना हमसे रोज, उस उम्र का हिसाब मांगता है। हम औरों की तरह मुकम्मल…
प्रिय तुम आज फ़ोन लेकर मत आना प्रिय तुम आज फ़ोन लेकर मत आना,इसके साथ चला आता है पूरा ज़माना। आज हम मिलना चाहते हैं बे-खलल,थोड़ी देर, सिर्फ तुमसे, तेरे…
हद कभी दायरे घर तक सिमट जाएँ तो;सब अपने हों, जिनके निकट जाएँ तो;काम थोड़े हों, जल्दी निबट जाएँ तो;लम्हे सामने से आकर लिपट जाएँ तो,क्या जिंदगी, बहुत बुरी हो…
खलती बहुत कमी है नीतियों में नीयत नेक की;तथ्यों में सूचना एक की;सूचनाओं में ज्ञान की;ज्ञान में विवेक की,खलती बहुत कमी है। बेशुमार हासिल पैगामों में;अपनेपन के संवादों की;सब शहर,कस्बे,…
जो सुन्दर है, विविध है कालातीत बृहत् ब्रह्म में;अनहत उसके अनवरत क्रम में;सब स्थिति, सब गति में;जड़-चेतन, समस्त प्रकृति में,जो भी है, सब विविध है। अंतरिक्ष में जो कहकशां,सबकी अनोखी…
हम-आप से परे सत्य तो बस है, उसका बोध ही संभव;प्रकृति उसकी, गंध, गुण-माप से परे। कुदरत में सतत गति सनातन है;ये ऋतु आवागमन, शीत-ताप से परे। जीवन में चलना…
प्रेम की एक तरल नदी लूंगा शिव नहीं हूँ मैं,कि सब के बदले जहर पी लूंगा।बुद्ध नहीं हूँ मैं,कि भिक्षाटन कर जी लूंगा। सांसारिक हूँ,कुछ जरूरतें, कुछ चाहतें हैं।कुछ दायित्व…
अवधेश प्रसाद नाम: डॉ अवधेश प्रसाद स्थान: कैनबेरा (ऑस्ट्रेलिया) पता: 97 लेक्सेन एवेन्यू, निकोल्स, एसीटी, ऑस्ट्रेलिया 2913 संपर्क: दूरभाष +61 411 773 296 ईमेल: Awadhesh.Prasad@outlook.com
फीजी में पत्रकारिता फीजी में पत्रकारिता फीजी में मिश्रित भाषा से “फीजी-बात” का जन्म हुआ। ‘फीजी बात’ उनके विचारों के आदान-प्रदान का सरल माध्यम थी। आज यही ‘फीजी बात’ फीजी…
अहंकार की माया (दार्शनिक सन्दर्भ) मैंने सुना हैनश्वर शरीर बना है पंचमहाभूतों सेसभी हैं शाश्वत और सात्त्विकजो हैं मानव सृष्टि के आधारभूत तत्त्व,आत्मा भी है ईश्वर का एक अंशअखंड, अनश्वर,…
प्रेम-दिवस का जश्न (श्रृंगार रस) प्रेम-दिवस की मधुशाला में तेरी आज प्रतीक्षा हैतेरे ओंठो की मदिरा से प्यास बुझाना बाकी है l तेरे नयनों के आकर्षण में मदहोशी का आलम…
बोल रहे हैं वृक्ष आज (जलवायु परिवर्तन) वृक्ष बोलते वृक्षों से कहते एक कहानीहरे-भरे उद्यानों में, विस्तृत वन्य प्रदेशों मेंउनकी वाणी फैल रही है दुनिया के आँचल मेंमानव जाति नहीं…
मेरा गाँव, मेरी परछाई (ग्रामीण जीवन) यह था वसन्त ऋतु का आगमनप्रकृति का स्वागतम, जीवन का स्पंदन l मुझे भी था इसका इंतज़ारताकि कर सकूँ रगों में नयी ऊर्जा का…
बाला की अभिलाषा (युग परिवर्तन की नारी) ग्रामीण कुटिया में बैठी बाला ध्यानमग्न है पुस्तक मेंसंवाद सुनती रेडियो पर ‘मोदी’ की चर्चा चालू हैकभी किताब, कभी रेडियो, दोनों के प्रति…
समय की आवाज (आतंकवाद का शाप) बंदूकों से निकले धर्म, ग्रंथ हुए बेकारमानवता घायल हुई, पीड़ा का संचार l धमाका हुआ विस्फोट का, हिल गया संसारअंधकार छाया गगन में, धरा…
मन का विषाद (विदेशी जीवन की एक झलक) दक्षिण ध्रुव का निकट पड़ोसी, कंगारू का देशसौम्य, सुशोभित, दृश्य मनोरम, उत्तम है परिवेश lहलवा पूड़ी भूल गया, खाते हैं बर्गर पिज़्ज़ापत्नी…
क्या आप कवि हैं? (व्यंग्य, परिहास) मैंने पढी है एक कविता :“वह दरवाजे से आयी, खिड़की से निकल गयीबालों की सुगंध छोड़ती गयीमेरी नासिका है व्यस्त, मस्तिष्क हुआ रिक्तदिल में…