डरपोक खिड़की – (कविता)
डरपोक खिड़की बंद वो खिड़की थीबरसों से यूँ ही पड़ी थीकमरे के कोने में डरतीछुपी सी खड़ी थी कभी झाँकती भी जो बाहरतो बंद कपाटों से कुछदिखता नहीं था बड़ा…
हिंदी का वैश्विक मंच
डरपोक खिड़की बंद वो खिड़की थीबरसों से यूँ ही पड़ी थीकमरे के कोने में डरतीछुपी सी खड़ी थी कभी झाँकती भी जो बाहरतो बंद कपाटों से कुछदिखता नहीं था बड़ा…
ओ पथिक दूर तक निगाह में जब न कोई दरख़्त होचिलचिलाती राह में धूप बड़ी सख़्त होये मान आगे मिलेंगे गुलिस्ताँन रुक पथिक, न पाँव तेरे सुस्त हों कभी धुँधले…
चाय और वो सुनो— ये दो चाय इधर भिजवानाज़रा जल्दी!मैं जल्दी में था,आख़िर बाल श्रम पे राष्ट्रीय गोष्ठी थी शहर मेंमेरी कविताओं पे चर्चा भी थीइस लिए जल्दी में था…
अम्बिका शर्मा जन्म-स्थान: आगरा, उ. प्र. वर्तमान निवास: मोंट्रीऑल/कैनेडा शिक्षा: स्नातकोत्तर बायोटेक्नॉलोजी प्रकाशित रचनाएँ: अहा ज़िंदगी, नव भारत टाइम्ज़, नवल उत्तराखंड लेखन-विधाएँ: कविता, गीत, नज़्म उल्लेखनीय गतिविधियाँ: संयोजक कबीर सेंटर…
साथी रहने दो प्रिय, मत लो मेरीलोहे की बेडौल कड़ाही।यह छिछली सी, बड़ी कड़ाही,दादी से माँ ने पाई थी।भारत छोड़ चली थी जब मैं,साथ इसे भी ले आई थी। अपनी…
दुविधा क्यों लिखूँ, किसके लिये?यह प्रश्न मन को बींधता है। लेख में मेरे जगत कीकौन सी उपलब्धि संचित?अनलिखा रह जाय तोहोगा भला कब, कौन वंचित?कौन तपता मन मरुस्थलकाव्य मेरा सींचता…
मेरा प्यार टेक कर घुटने, झुका सिर,प्रेम का जो दान माँगे,हो किसी का प्यार लेकिन,प्यार वह मेरा नहीं है। रख नहीं पाया मान निज जो,प्यार वह कैसे करेगा?हीनता से ग्रस्त…
पीला पत्ता रुको साथी, हटा लो हाथ को,न तोड़ो, छोड़ दो, पीले पड़े इस पात को। कहा तुमने, हरित इस डाल पर,यह अब नही सजता।नये, चिकने, चमकते किसलयों के बीच,है…
किस किस को ले डूबा पानी किस किस को ले डूबा पानीपानी आख़िर निकला पानी ऐसे कब बरसा था पहलेअब के बरसा इतना पानी कच्चे घरों पर क्यूँ बरसा थापागल…
हुई मुद्दत कोई आया नहीं था हुई मुद्दत कोई आया नहीं थाये घर इतना कभी सूना नहीं था वो मेरा दोस्त था लेकिन कभी वोबुरे वक़्तों में काम आया नहीं…
इक मुसाफ़िर राह से भटका हुआ इक मुसाफ़िर राह से भटका हुआइक दिया मुंडेर पर जलता हुआ एक पत्ता शाख से गिरता हुआइक परिंदा आस्माँ छूता हुआ एक तितली फूल…
जहाँ में इक तमाशा हो गए हैं जहाँ में इक तमाशा हो गए हैंहमें होना था क्या, क्या हो गए हैं नुमाइश कर रहे हैं ज़िन्दगी कीनज़ारा अच्छा ख़ासा हो…
कैसे भूला जा सकता है कैसे भूला जा सकता हैIIभारत माँ का अनोखा प्यारमाँ के बच्चे थे बड़े मिलनसारढूँढ़ता हुआ हिंदी ज्ञान का सागरज्ञान के साथ ही पाया अपारख़ुशी से…
कोई लहर समुन्द्र की कौन सी लहरहमें ले जाएगी किनारेकौन सा किनाराहमें थाम लेगामट्टी का कौन-सा हिस्सा हमेंजकड़ लेगाहम नहीं जानतेन ही जानना चाहते हैंक्योंकि जान नहीं पाएंगेबस यही चाहते…
समझदार लोग लोग हैं लोगलोग हैं समझदारसमझदार लोग उठाते हैं आवाजेंउठ रही हैं हर तरफ से आवाजेंपर उठ नहीं रहे हैं लोगजो उठा रहे हैं आवाजेंक्योंकि लोग हैं समझदारऔर समझदार…
ज्योति गीत हों सहस्त्र ज्योति दीप, हों सहस्त्र ज्योति कण,हों सहस्त्र ज्योति गीत, हों सहस्त्र ज्योति क्षण, थिरकते हों ज्योति स्वर, काल के अवशेष पर,महकते हों पारिजात, ज्योति रश्मि केश…
हिन्दी भाषा हिन्दी है मेरी अनमोल प्यारी मातृभाषाबने सबकी अभिव्यक्ति की साख ऐसी अभिलाषाटोक्यो की हिन्दी सभा शिविर में आकर ये विचार आयाकरे हिन्दी के उत्थान के लिए कुछ ये…
इस देश में बसंत बैठ मुंडेर पर निहार रहा हैपथिक भ्रांत दृश्य एक सामने उसके रचा हुआ हैरचनाकार का बसंत विशेष दिवास्वप्न-सा आगंतुक अविचल हैऋतुराज का दृश्य नवल नवीनमानो शाख…
कवियों का स्वर्ग (थाईलैंड के महान कवि राजकुमार बिद्यालोंकॉर्न द्वारा रचित “सूअंक सवान छन कवी” शीर्षक थाई कविता से प्रेरित है) कवियों का स्वर्ग है अत्यंत सुन्दरजहाँ चमक रत्नों से…
थाईलैंड के महान कवि सुन्दरभू और अनूदित कविता “सुन्दरभू” थाईलैंड के सबसे महान कवियों में से एक हैं। उनका जीवनकाल सन् 1786 से 1855 तक रहा था। उस समय थाईलैंड…