Category: प्रवासी साहित्य

प्रगीत कुँअर की लघु कथाएँ

1. लघुकथा – ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रूपैया’ पिता के बाद माँ को आधी पेंशन मिलने लगी थी जो एक अच्छी ख़ासी रक़म थी जो युवा बच्चों के वेतन से भी…

प्रगीत कुँअर की ग़ज़लें

ग़ज़ल -1 देर थोड़ी क्या हुई पर फड़फड़ाने में हमेंआसमाँ ही लग गया नीचे गिराने में हमें एक मुश्किल को ज़रा सुलझा दिया हमने तभीमुश्किलें सब लग गयीं हैं आज़माने…

खत लिखने का वो ज़माना चला गया – (ग़ज़ल)

खत लिखने का वो ज़माना चला गया सुकुन से बैठ कर खत लिखने का, वो ज़माना चला गया;चलता था कुछ धीरे, मलाल है, वो वक़्त पुराना चला गया। तेज रफ़्तार…

आईना हमसे उम्र का हिसाब मांगता है – (ग़ज़ल)

आईना हमसे उम्र का हिसाब मांगता है रहा नहीं जो वक़्त, एक लम्हा कभी काबू में हमारे,आईना हमसे रोज, उस उम्र का हिसाब मांगता है। हम औरों की तरह मुकम्मल…

प्रिय तुम आज फ़ोन लेकर मत आना – (कविता)

प्रिय तुम आज फ़ोन लेकर मत आना प्रिय तुम आज फ़ोन लेकर मत आना,इसके साथ चला आता है पूरा ज़माना। आज हम मिलना चाहते हैं बे-खलल,थोड़ी देर, सिर्फ तुमसे, तेरे…

हद – (कविता)

हद कभी दायरे घर तक सिमट जाएँ तो;सब अपने हों, जिनके निकट जाएँ तो;काम थोड़े हों, जल्दी निबट जाएँ तो;लम्हे सामने से आकर लिपट जाएँ तो,क्या जिंदगी, बहुत बुरी हो…

खलती बहुत कमी है – (कविता)

खलती बहुत कमी है नीतियों में नीयत नेक की;तथ्यों में सूचना एक की;सूचनाओं में ज्ञान की;ज्ञान में विवेक की,खलती बहुत कमी है। बेशुमार हासिल पैगामों में;अपनेपन के संवादों की;सब शहर,कस्बे,…

जो सुन्दर है, विविध है – (कविता)

जो सुन्दर है, विविध है कालातीत बृहत् ब्रह्म में;अनहत उसके अनवरत क्रम में;सब स्थिति, सब गति में;जड़-चेतन, समस्त प्रकृति में,जो भी है, सब विविध है। अंतरिक्ष में जो कहकशां,सबकी अनोखी…

हम-आप से परे – (कविता)

हम-आप से परे सत्य तो बस है, उसका बोध ही संभव;प्रकृति उसकी, गंध, गुण-माप से परे। कुदरत में सतत गति सनातन है;ये ऋतु आवागमन, शीत-ताप से परे। जीवन में चलना…

प्रेम की एक तरल नदी लूंगा – (कविता)

प्रेम की एक तरल नदी लूंगा शिव नहीं हूँ मैं,कि सब के बदले जहर पी लूंगा।बुद्ध नहीं हूँ मैं,कि भिक्षाटन कर जी लूंगा। सांसारिक हूँ,कुछ जरूरतें, कुछ चाहतें हैं।कुछ दायित्व…

समग्र सोच – (कविता)

समग्र सोच अक्षरों में शब्दों को,वाक्यों में पदों को;ऊंचाइयों में कदों को,पाबंदियों में हदों को,देखने के लिए समग्र सोच चाहिए। पेड़ों में वन को,अंगों में तन को;विचारों में मन को,चाँद-तारों…

लाला रूख़ – (कविता)

लाला रूख़ लाला रूख़ में बैठ भारत सेजब विदा हो गये तुमन समझना कभी किएक दूसरे से जुदा हो गये हम एक ही माँ की दो संतानें हैं हमएक ही…

खोया शहर – (कविता)

खोया शहर सालो बाद अपने शहर आई हूँ,बहुत से सपने और उम्मीदेंसमेट मन में भर कर लाई हूँढूँढ रही हूँ वो आँगनजहाँ खेलते बीता मेरा बचपन खोज रही हूँ माँ…

गुड़िया तुम्हारी – (कविता)

गुड़िया तुम्हारी बाबा मैं पली भले ही माँ की कोख मेंपर बढ़ी हर पल आपकी सोच मेंआप ही मेरा पहला प्यारआप ही मेरा छोटा-सा संसारआपकी ही अंगुली पकड़ करपहला कदम…

बस्ता – (कविता)

बस्ता हर एक स्त्री की पीठपर एक बस्ता हैजिसमें छिपे हैंउसके दुख-दर्दऔर चिंताएँकभी कभीन चाहते हुए भीदर्द को न दिखाते हुए भी,सब छिपाते हुए भीहर एक स्त्री कोये ढोना पड़ता…

तुम हंसती बहुत हो – (कविता)

तुम हंसती बहुत हो तुम हंसती बहुत हो,क्या अपनी उदासी कोइसके पीछे छिपाती हो?ये जो गहरा काजलतुमने आँखों में है लगायाकितने ही आंसुओं कोइनमें है छिपाया? खुद को मशरूफ रखनेका…

बचपन – (कविता)

बचपन ज़माना मुझे कुछ इस तरहइस तरह जीना सीखा रहा हैबाज़ार में बचपन को बेचभविष्य के सपने बुनना सीखा रहा है गणित ज़िंदगी कापाठशाला में नहींखुद दुनिया के बाज़ारसे सीख…

सवाल – (कविता)

सवाल एक सवाल हमेशामेरे मन में घर कर रहा हैहैरान हूँ, परेशान हूँलोग कहते हैं, हम इंसान हैंअगर हम इंसान हैसुनाई क्यों नहीं देतीचीखें हमें घायलों कीमहसूस होता दर्द क्यों…

परदेस – (कविता)

परदेस न तीज है, न त्यौहार हैपरदेस में लगता सूनासब संसार हैन सावन के झूलेन फूलों की बहार हैन आम की डाली परबैठ कोयल गाती मल्हार हैन लगते यहाँ तीजमेले…

देश हमारी जान – (कविता)

देश हमारी जान चलो उठाकर गर्व से मस्तक अपना हिन्दुस्तान है,इस पर आंच न आने देंगे, देश हमारी जान है। है नेतृत्व सबल हाथों में, हर मुश्किल आसान है,शत शत…

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