मोम के देवता – (कविता)
मोम के देवता पत्थर कठोर होता हैवह देवता होता हैऔरयुगों तक देवत्व को जीता है। संवेदनाहीन!इसीलिए वहस्मित मुख धारण करता हैऔरयुगों तकनिश्कलंकित रहता है।संज्ञा शून्य!इसीलिए वहविष-अमृत ग्रहण करता हैऔरयुगों तकअमरत्व…
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मोम के देवता पत्थर कठोर होता हैवह देवता होता हैऔरयुगों तक देवत्व को जीता है। संवेदनाहीन!इसीलिए वहस्मित मुख धारण करता हैऔरयुगों तकनिश्कलंकित रहता है।संज्ञा शून्य!इसीलिए वहविष-अमृत ग्रहण करता हैऔरयुगों तकअमरत्व…
दीर्घ सन्धि की कहानी आगे-आगे थी विद्यापीछे-पीछे था आलयदोनों अपनी अपनी साइकिल चला रहे थेपर आलय का अगड़ा आऔर विद्या का पिछला आकोई गुल खिला रहे थेविद्या का आ बोला…
गौरैया पिताजी कहते थेकाटे हुए नाखूनदरवाजे के सामनेकभी मत फेंकना,दाना समझकरचुन लेती है, गौरैयाऔरपेट की अंतड़िया टूटकरतड़पकर मरती है गौरैया, फसल कटाई खत्म होते हीपिताजी मंदिर जाकरबंदनवार में अनाज के…
(समाज सुधारक और देश में नारी को शिक्षा देने के लिए पहला स्कूल पुणे में खोलने वाले ज्योतिबा फुले पर लिखी गयी मराठी कविता का हिंदी अनुवाद) ज्योतिबा धन्यवाद ज्योतिबाधन्यवाद।आप…
माँ माँ एक नाम हैअपने आप भरा पूराघर में जैसे एक गाँव है,सभी में मौजूद रहती हैअब इस दुनिया से दूर हैलेकिन कोई मानता नहीं।मेला खत्म हुआ, दुकानें उठ गईपरदेस…
समर्पण अनुभूतियों के सभी दरवाजेबंद करने के बादधीरे धीरे खुलने लगती है –संदेह की पुरानी खिड़कियां बहस-दर-बहस का मरहम लगाकरमिटते नहीं कलह के घावबल्किऔर अधिक गहरे होते जाते हैं। ऐसे…
इसी पल जब सपाट आवाज़ मेंडुबो देती है उदासीऔर भूल जाते हो तुम बात करनाठीक उस वक्त से मैं मुरझाने लगती हूँठूँठ की तरहक्यों सूखा देते हो तुम मुझेइस मौसम…
https://www.youtube.com/watch?v=DeNJdRmX6cs
76 वाँ गणतंत्र मेरा देश वह साइकिल हैजिसे 540 गण चला रहे हैं300 चला रहे हैं दिन रात पैडलबाकी मिलकर ब्रेक लगा रहे हैं। कोई दाहिनी ब्रेक तो कोई वामकोई…
संज्ञा बोली सर्वनाम से न जाने क्योंसंज्ञा और सर्वनाम मेंतकरार हो गईसर्वनाम बना हुआ था ढालऔर संज्ञा तलवार हो गई! वो सर्वनाम से बोली —अरे मेरे चाकर!मेरे आश्रित!मेरे पालतू!और फालतू!मेरी…
उपसर्ग और शब्द हम भगतसिंह हैं, आज़ाद हैंहम करोड़ों नहींदस बीस होते हैमाना कि हम कटे हुए शीश होते हैंहम कौम के लिए उत्सर्ग होते हैंहम शब्द नहीं, उपसर्ग होते…
उक्ति के बहाने से कुछ भी कहावो वाक्य हैअपना मत रखातो कथन हैकथन की ओर उँगलीउक्ति हैसारगर्भितया कि मर्मबेधक उक्तिसूक्ति हैऔर बरसों बरस का अनुभवचढ़ जाएलोगों की जुबान परतो लोकोक्ति…
मुहावरे और लोकोक्ति की भिड़ंत एक दिनमुहावरे और लोकोक्ति मेंहो गई जिद्दबाजीकदम पीछे हटाने कोन मुहावरा राजीन लोकोक्ति राजी! मुहावरे ने उचक कर कहा —तुम खुद को समझती क्या हो?तुम…
गणित और साहित्य पता नहीं कौन-सा काँटागणित के दिल में पैठ गयाकि एक दिन साहित्य से ऐंठ गयाबोला —अबे ओ साहबजादे साहित्य!कहते होंगे लोग तुझे आदित्य!पर यह मत भूलआदित्य की…
बासंती हवा पोर पोर में फूल खिले हैंरोम रोम खुशबू से भरानाच रहा है मन मेरा याझूम रहे आकाश धरा दिखे अधिक पीली मुझकोया किसी ने रंग डाली सरसोंमहक रही…
सुनो अमीनी दरख़्त की डाल…ऊंची फुनगी पे बैठीगौरैया से बतियातीअपनी जिज्ञासा रोक नहीं पायी…इक दिन सवाल कर ही बैठी… उड़ान के हौंसलेकहाँ से लाती हो तुम…?चीलों, गिद्दों और बाज़ की…
औरतें खिलखिलाती धूप सीऔरतेंअलसुबह चूल्हे को लीपतीगुनगुनाती हैंअलसाई तंद्रा को भगानेखदबदाते पानी के धुएँ मेंतलाशती हैंखुशियों की फरमाइशेंऔरनन्हें हाथों मेंचाँद सी रोटी थमाबोसा लेकेभरपूर मुस्कुराती हैं। पूरे दिन कोठेंगा दिखाचल…
आहट सर्द रातों मेंकोहरे को चीरतीएक सुलगी सी आहटबेलाग लिपट जाती हैबारंबार कुनकुनी धूप कोअपनी दोहर में लपेटे..! कभीचादर की सलवटों मेंउदासी की संतप्त सांसेंबीतने नहीं देतींसिरफिरी ख्वाहिशों कोउनकी उद्दाम…
युयुत्सु किसने चाहा युयुत्सु बनना..?सत्य के पक्ष में डटे रहनासमय की नंगी तलवार पे चलनावो भी बिना डगमगाए…!!!कुछसत्ता के पक्षधरअक्सर प्रश्नों के बवंडरउड़ा देते हैंआँखों में धूल की मोटी परत…
हाथ से फिसलती जमीन… तेजेंद्र शर्मा एम.बी.ई. “ग्रैंड पा, आपके हाथ इतने काले क्यों हैं? आपका रंग मेरे जैसा सफेद क्यों नहीं हैं?…आप मुझ से इतने अलग क्यों दिखते हैं?”…