Category: भारत

‘कुछ कही, कुछ अनकही’ : संवेदनाओं की मौन अभिव्यक्ति – (पुस्तक समीक्षा)

कही गई और अनकही भावनाओं का आईना समीक्षक: प्रीती जायसवाल कविता साहित्य का वह सशक्त माध्यम है जो हमें समाज को एक नई दृष्टि से देखने, समझने और महसूस करने…

छुअन- छुअन में फर्क बहुत है! – (कविता)

डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम छुअन- छुअन में फर्क बहुत है! माँ छूती है बादल जैसेबारिश जैसे, अमृत जैसे!स्पर्श पिता काधूप हो जैसे, सूरज जैसे।दादा दादी नाना नानीकिशमिश जैसे और छुआरे।सखी…

अपनी नागरी लिपि – (कविता)

डॉ. शारदा प्रसाद *** अपनी नागरी लिपि हिंदी हो जन-जन की भाषाहिंदी हो हर-मन की आशा!बने सकल विश्व में सिरमौरऐसी है सबकी अभिलाषा!! सब मिलकर करें प्रयासहर बोली का हो…

करम परब – (कविता)

*** डॉ शारदा प्रसाद करम परब (झारखंड का लोकप्रिय पर्व) भादो माह शुक्ल एकादशीकरम परब लेकर आया!हरियर करम डाल ले भाई आयाबहना का मन हरसाया!! भाई-बहन का पर्व है प्याराकरमा-धरमा…

रक्षा बंधन – (कविता)

डॉ शारदा प्रसाद *** रक्षा बंधन सावन का पूनम का चंदाआया ले किरणों का उपहार!सकल विश्व मना रहाभाई-बहन का सुंदर त्यौहार!! कलाई सजेगी राखी सेशुभ तिलक लगेगा भाल विशाल!आरती उतारे…

झूलन – (कविता)

डॉ शारदा प्रसाद *** झूलन झूला झूलैं कृष्ण-कन्हैयामाथे मोर मुकुट अति शोभितबलि-बलि जात हैं नंद-यशोदागोपियों का मन हर्षित- मोहित सावन माह है अति मनभावनझूलैं संग-संग राधा रानी!कृष्ण-कन्हैया के मन बसतीवृषभानु…

आजादी की सुनहरी भोर – (कविता)

डॉ शारदा प्रसाद *** आजादी की सुनहरी भोर सन् सत्तावन से सततचलती रही लड़ाई!तब जाकर आजादी कीपावन शुभ घड़ी आई!! आजादी की बलिवेदी परवीरों ने शीश चढ़ाई!अंग्रेजों के दमन सहेऔर…

आम आदमी – (कविता)

प्राची मिश्रा *** आम आदमी वो मिलता है वो दिन मुझकोअपना सामान समेटे हुएमैली कुचैली इक चादर मेंअपना ईमान समेटे हुए हाड़ मांस की इक जर्जर कायामिलती बोझा ढोते हुएमुख…

आम आदमी अमन चाहता है – (कविता)

प्राची मिश्रा *** आम आदमी अमन चाहता है न कलह चाहता हैन दमन चाहता हैन सत्ता चाहता हैन चमन चाहता हैपिस जाता है फिरभी सियासत के पाटों मेंएक आम आदमी…

अच्छी औरतें – (समाचार)

प्राची मिश्रा *** अच्छी औरतें ज़माने ने समझायाअच्छी औरतें घर में रहती हैंजो अपने मन की बात के अलावासब कुछ कहती हैंजो लड़ती हैं पति से गहने ज़ेवर के लियेपर…

तुम्हारा होना – (कविता)

प्राची मिश्रा *** तुम्हारा होना मेरे दुपट्टे का एक छोरहमेशा तुम्हारा रहेगाजिसमें बेफिक्र होकर तुमपोंछ सको अपने आँसूहां तुमने ठीक सुना!!मैं चाहती हूँ तुम दर्द कोइक्कठा करना छोड़ दोतुम्हारे रोने…

ये आँखें – (कविता)

प्राची मिश्रा *** ये आँखें ये आँखेंबस उतनी ही छलकनी चाहिएजितने में न डूबे ये संसारये धरती और ये मनचीर कर दुःख का सीनाजब पिघलती हैं ये आँखेंपत्थर कर देती…

प्रेम की अरण्य मेज़ : कला, जीवन और सह-अस्तित्व का अद्भुत उत्सव – (यात्रा डायरी)

प्रेम की अरण्य मेज़ अलका सिन्हा हाल के लंदन प्रवास के दौरान 3 अगस्त 2025 को पैडिंग्टन स्टेशन पर एक अद्भुत सार्वजनिक कला-कृति देखने का अवसर मिला। यह है —…

एक और इंडिया हाउस जहां छुपा है भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास – (यात्रा वृतांत)

एक और इंडिया हाउस जहां छुपा है भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास प्रदीप गुप्ता सामान्यत: लन्दन में रहने वाले भारतीय मूल के लोग जिस इंडिया हाउस को जानते हैं वह…

प्रेम का लाइसेंस – एक राष्ट्रीय योजना – (व्यंग्य आलेख)

प्रेम का लाइसेंस – एक राष्ट्रीय योजना डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ देश में समस्याएँ बहुत हैं — बेरोज़गारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, और अब एक नई राष्ट्रीय आपदा: आधुनिक प्रेम, जिसे…

बहुत याद आएंगें, विभूति जी! – (संस्मरण)

बहुत याद आएंगें, विभूति जी! दिनेश कुमार माली, ओड़िशा हर दिन की तरह आज सुबह भी मैंने लिंगराज एमटी हॉस्टल के चारों परिक्रमा करते हुए मैंने फोन किया, “कैसी तबीयत…

ऑक्सफ़र्ड की ऐतिहासिक ब्लैकवेल बुकशॉप में – (यात्रा डायरी)

ऑक्सफ़र्ड की ऐतिहासिक ब्लैकवेल बुकशॉप में अलका सिन्हा ऑक्सफ़र्ड की ऐतिहासिक ब्लैकवेल बुकशॉप में प्रवेश करते ही जो पुस्तक सबसे पहले मेरी आंखों में उतरी, वह थी बानू मुश्ताक की…

केंसिंग्टन गार्डन की एक शाम… – (यात्रा डायरी)

केंसिंग्टन गार्डन की एक शाम… अलका सिन्हा 3 अगस्त 2025 आज हम केंसिंग्टन गार्डन गए। हरे-भरे पेड़ों के बीच, झील के किनारे टहलते हुए, हंसों और बतखों के साथ खेलते-खिलखिलाते…

हिडिम्बा प्रदेश मनाली – (यात्रा संस्मरण)

हिडिम्बा प्रदेश मनाली डॉ वरुण कुमार अपना देश प्राकृतिक विविधता की दृष्टि से विलक्षण है। यहाँ एक ही समय में एक जगह लू चलती है तो दूसरी जगह बर्फ पड़ती…

अंतिम उम्मीद का आखिरी टिकट – (व्यंग्य कथा)

अंतिम उम्मीद का आखिरी टिकट डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ पुराने शहर के उस कोने में, जहाँ सूरज की किरणें भी सरकारी फाइलों की तरह देर से पहुँचती थीं, एक…

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