Author: वैश्विक हिंदी परिवार

नीदरलैंड में बिहार दिवस की धूम – (रिपोर्ट)

नीदरलैंड में बिहार दिवस की धूम रिपोर्ट- डॉ ऋतु शर्मा ननंन पाँडे नीदरलैंड गर्व से कहो हम बिहारी हैएक राज्य नही, एक देश देश नहींपूरा विश्व हमारा आभारी है.. गर्व…

गाँव की गोरी – (कहानी)

गाँव की गोरी अनुसूया साहू फूलों से मुझे विशेष प्रेम है, और तितलियाँ भी मेरे मन को बहुत भाती हैं। जैसे वे रंग-बिरंगे पंखों के साथ आकाश में स्वच्छंद उड़ान…

अच्छा है – (कविता)

अच्छा है सूखा पत्ताबोझिल रिश्ताझड़ जाए तो अच्छा है। मन की पीरनयन का नीरबह जाए तो अच्छा है। काली रातजी का घातढल जाये तो अच्छा है। अमीर की तिजोरीचोर की…

अनुसूया साहू – (परिचय)

अनुसूया साहू जन्म : १२ फ़रवरी १९८२, बुंदेलखंड ज़िला महोबा, प्रांत उत्तर प्रदेश शिक्षा : मुंबई, एचआर से एमबीए। वर्तमान में : सिंग़ापुर में शिक्षिका के तौर पर हिंदी सोसायटी…

पगडण्डी की तलाश – (कविता)

पगडण्डी की तलाश अपनी कोठरी के छोटे से झरोखे से देखती हूँदूर, बहुत दूर तक जाते हुए उन रास्तों को।पक्की कंक्रीट की बनी साफ़ सुथरी सड़केंखुद ही फिसलती जातीं सी…

गर्वीला प्रेम – (कविता)

गर्वीला प्रेम वो बैठी थी सोफे नुमा कुर्सी पर, कुछ आगे झुकी हुई,घुटनो तक का फ्रॉक और कम ऊंची एड़ी की सेंडल,ठुड्डी को हथेली पर टिकाये हलकी भूरी आँखों में…

उसका मेरा चाँद – (कविता)

उसका मेरा चाँद एक नौनिहाल माँ काएक खिड़की से झाँक रहा थासाथ थाल में पड़ी थी रोटी चाँद अस्मां का मांग रहा थामाँ ले कर एक कौर रोटी काउसकी मिन्नत…

यह भान किसे – (कविता)

यह भान किसे उसके सपनीले धागों मेंमैंने स्व मन के मोती धरेजो माला बनी, वो उसने धरीथे मनके किसके यह याद किसे। रातों के गहरे आँचल मेंकुछ उज्ज्वल से तारे…

त्रिभुवनदास पुरूषोत्तमदास लुहार : आज जिनका जन्मदिन है – (दिन विशेष_22.03)

त्रिभुवनदास पुरूषोत्तमदास लुहार त्रिभुवनदास पुरूषोत्तमदास लुहार का जन्म 22 मार्च 1908 को मियाँ मातर, भरूच, बॉम्बे प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत में हुआ था। वे भारत के एक गुजराती भाषा के कवि…

आज के दिन विभूति विशेष के नाम : हनुमान प्रसाद पोद्दार – (दिन विशेष)

आज के दिन विभूति विशेष के नाम : हनुमान प्रसाद पोद्दार – डॉ जयशंकर यादव 22 मार्च 1971 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और आध्यात्मिक विभूति हनुमान प्रसाद पोद्दार का निधन। उन्होंने…

मराठी-फारसी राज्य व्यवहार कोश की संक्षिप्त जानकारी – (लेख)

मराठी-फारसी राज्य व्यवहार कोश की संक्षिप्त जानकारी ~विजय नगरकर, अहिल्यानगर, महाराष्ट्र छत्रपति शिवाजी महाराज ने राज्य व्यवहार कोश मराठी में जारी किया था। इसके पीछे का इतिहास इस प्रकार है:…

यूक्रेन रूस युद्ध में भाषा विवाद का बारूद – (विचार स्तंभ)

यूक्रेन रूस युद्ध में भाषा विवाद का बारूद ~ विजय नगरकर यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे संघर्ष में भाषा विवाद एक महत्वपूर्ण और जटिल पहलू है, जो दोनों…

 वोदका भरी आँखों वाली लड़की – (कहानी)

वोदका भरी आँखों वाली लड़की – शिखा वार्ष्णेय कुछ कुछ किसी ग्रीक लड़की सा डील- डौल था उसका। लंबा कद, भरा हुआ बदन, लंबे काले बाल, और लंबी चौड़ी सी…

एक गायब हुआ द्वीप : सेंटोरिनी – (यात्रा वृतांत)

एक गायब हुआ द्वीप : सेंटोरिनी – शिखा वार्ष्णेय The lost Atlantis – एक ऐसा द्वीप जो एक रात में गायब हो गया। इसके पीछे कई किंवदंतियाँ हैं, जिन्हें कोई…

वो चाचा निकल गए काये – (कहानी)

वो चाचा निकल गए काये – शिखा वार्ष्णेय शाम के चार बजे रहे थे। धूप के साथ पंछी भी लौटने लगे थे। आँगन में पड़े फोल्डिंग पलंग पर राजवंती, अपने…

शिखा वार्ष्णेय – (परिचय)

शिखा वार्ष्णेय ब्रिटेन में आगमनः 2007 जन्मः 20 दिसंबर 1973 स्थानः नई दिल्ली शिक्षा: मोस्को स्टेट यूनिवर्सिटी, मास्को से टी.वी. जर्नलिज्म में परास्नातक (विशेष सम्मान सहित) तथा स्कूली शिक्षा उत्तराखंड…

विधवा नदी – (कविता)

विधवा नदी शहर के चौखट परबहती थीवो नदीजिसमें गिर करसूरज बुझताऔर चाँदमुँह धो के संवर जाताखुश्क हवाएंछू कर इसकोनम हो जातीसंध्या के अरुण श्रृंगार सेनदी की लहरेंसुहागन बन भाग्य पर…

नदी – (हाइकु)

नदी 1. चीखी थी नदीतट पर उसकीलाशों के ढेर 2. प्रसूता नदीगन्दगी तट परजन्मी थी मौत 3 उछलती थीलगा दिये अंकुशमन नदी पे 4 रोई बहुतऔर खारी हो गयीवो मीठी…

जब प्रवासी साहित्य ने ब्रिटिश साम्राज्य को झुकने पर मजबूर किया – (विचार स्तंभ)

जब प्रवासी साहित्य ने ब्रिटिश साम्राज्य को झुकने पर मजबूर किया – अभिषेक त्रिपाठी, बेलफास्ट,आयरलैंड हिंदी साहित्य की मुख्यधारा में प्रवासी साहित्य को कई बार ऐसा साहित्य माना जाता है,…

संकाय शोध परियोजना के अंतर्गत एवं हिंदी विभाग के सहयोग से 18 मार्च को ‘भारतीय मूल्यबोध और हिंदी सिनेमा’ विषय पर एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन – (रिपोर्ट)

व्यावसायिकता से विमुख होकर सिनेमा नहीं चल सकता – प्रो. सुधा सिंह फ़िल्में आधी हक़ीक़त और आधा फ़साना हैं – प्रो. बिमलेंदु तीर्थंकर भारतीय मूल्यबोध से हटेंगे तो फिल्में पिट…

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