अम्मा – (कविता)
नरेश शांडिल्य अम्मा मंदिर की देहरीभजन गाती मंडलीदाना चुगती चिड़ियातुलसी का बिरवापीपल का पेड़छड़ीवॉकरअस्पताल का स्ट्रेचर…जब-जब भी दिखते हैंयाद आने लगती है –अम्मा… सब छोड़ गई अम्मा –अपना हॉल सा…
हिंदी का वैश्विक मंच
नरेश शांडिल्य अम्मा मंदिर की देहरीभजन गाती मंडलीदाना चुगती चिड़ियातुलसी का बिरवापीपल का पेड़छड़ीवॉकरअस्पताल का स्ट्रेचर…जब-जब भी दिखते हैंयाद आने लगती है –अम्मा… सब छोड़ गई अम्मा –अपना हॉल सा…
– नरेश शांडिल्य घास काटती हुई औरत बाग़ मेंघास काट रही है एक औरत पर वैसे नहीं –जैसे गोवा के टापूकाट रहे हैं छुट्टियाँ पर वैसे नहीं –जैसे संसद के…
डॉ. महादेव एस कोलूर वैश्विक हिंदी परिवार की उड़ान (जून 2020 से जून 2025 के पाँच स्वर्णिम वर्षों पर आधारित) हिंदी के स्वर ने जब सुर छेड़ा,दूर देशों का मन…
– शशिकला त्रिपाठी, भारत बाजार में त्योहार अब त्योहार झूमने लगे हैंरसिकों में, जाति विशेष के समूहों मेंक्लबों में, बेड़ों पर, बड़े-बडे होटलों मेंजनता की पहुँच से दूरगाई जाती है…
– विनोद पाराशर तुम्हारी नज़र में तुम्हारी नज़र मेंजो मैं हूँवो मैं नहीं हूँ।जो मैं नहीं हूँदरअसल-मैं वही हूँ।मेरा-मुस्कराता चेहरा-शानदार पोशाक-चमचमाते जूतेदेखकर-जो तुम समझ रहो होवो मैं नहीं हूँ।जो मैं…
– विनोद पाराशर खूबसूरत कविता! मैं /जब भीलिखना चाहता हूंकोई खूबसूरत कविता!अभावों की कैचीकतर देती हैमेरे आदर्शों के पंख!कानों में-गूंजती हैं-आतंकित आवाजेंन अजान,न शंख! मैं/जब भीलिखना चाहता हूंकोई खूबसूरत कविताभ्रष्टाचारी…
– विनोद पाराशर सुख और दुःख! हम-यह जानकरबहुत सुखी हैंकि-दुनिया के ज्यादातर लोगहमसे भी ज्यादा दु:खी हैं!पिता-इसलिए दु:खी है-कि बेटा कहना नहीं मानताबेटे का दु:ख-कैसा बाप है!बेटे के जज्बात ही…
– विनोद पाराशर स्त्री की पहचान! जब वहपैदा हुईतो बनीकिसी की बेटीकिसी की बहनबढ़ती रहीखर-पतवार-सीकरती रहीसब-कुछ सहन।जवान हुईबन गयीकिसी की पत्नीकिसी की भाभीतो किसी की पुत्र-वधु!विष पीकर भी-घोलतीं रहीओरों के…
– कृष्णा कुमार ज़िन्दगी ज़िन्दगी की अस्थिरता ने,हमें बहुत कुछ सिखाया हैअब तो लगता है जैसे,इसी का नाम है ज़िन्दगी। इस उथल-पुथल में,कुछ बहुत पास आ जाते है,कुछ दिखाई तो…
– कृष्णा कुमार लो वसंत रितु आई लो वसंत रितु आई -२ पेड़ों पे कोंपल मुसकाई -२सूरज की मीठी धूप पाकरकलियों ने ली अँगड़ाई लो वसंत रितु आई-२ इंद्रधनुष सा…
…तो अच्छा होता – कृष्णा कुमार हमें अजनबी ही रहने दिये होते, तो अच्छा होता,जानकर,अनजान ना बने होते, तो अच्छा होता। ख़ुशियों की उम्मीद ना होतीगुज़रे पलों की याद ना…
बढ़ते कदम – कृष्णा कुमार आज झरोंखों के पार देखाआज दिल को समझायाचल उठ, उठकर, कुछ क़दम तो बढ़ाक्या पता उसपार, इसपार से कुछ ज़्यादा हो,नीले आसमाँ के अलावा कुछ…
असहाय लोग – कृष्णा कुमार एक पाँच साल की बच्ची,और उसकी तीन साल की बहन,उचक उचक के चलते पाँव,क्या हज़ार किलोमीटर चल पाएँगे?नंगे पॉंव पे छाले कहाँ तक ले जाएगें?एक…
कविता – कृष्णा कुमार लिखने बैठी हूँ कविता,कविता ये क्या है ?ये हक़ीक़ते बयाँ है क्या ? जिसे कहना बहुत मुश्किल हो,लफ़्ज़ों से खेलना जिसकी फ़ितरत हो,कई प्रकार की कल्पना…
डॉ० अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’, प्रयागराज दिल में दीप जलाने वाले (सार छन्दाधारित गीत) घर-आँगन में घोर निराशा, चहुँदिश है अँधियारा।दिल में दीप जलाने वाले, नित करते उजियारा॥ दुराचार के कारण…
– निशा भार्गव आपरेशन सिंदूर आज से 48 वर्ष पूर्व हमने भी किया थाऑपरेशन सिंदूरजिससे हमारे चेहरे पर छाया था नूरमाँग का सिंदूर रहा था चमकऔर उसी दिन से शुरू…
– डॉ० अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’, प्रयागराज शस्य श्यामला वितान (श्येनिका छंद-२१२ १२१ २१२ १२) शस्य श्यामला वितान है धरा।उर्वरा स्वदेश है हरा भरा॥हैं उपत्यका नवीन वेश में।मेखला विराजमान देश में॥…
डॉ. मंजु गुप्ता जल ही जीवन बहता पानी नदिया हैझरता पानी झरनाबरसता है तो बारिशआँखों में डबडबाए तो आँसूफूल पंखुरी पर लरजती ओस की बूँदजमकर हिमशिला, फ्रीजर में रख दो…
डॉ. मंजु गुप्ता पुरुष नहीं रोते तुम रोती हो, हँसती हो, खुलकर अपनी बात कहती होतारसप्तक में, कोई बात पसंद न आने पर, गुस्सा करती हो,खीजती हो, झल्लाती हो, बर्तन…
– अनिल जोशी *** 1. माँ के हाथ का खाना बहुत स्वादिष्ट खाना बनाती है तुम्हारी मां,कहा एक मित्र ने, पूछ कर आना उनसे,कौन से मसाले डालती हैं वो,हँस पड़ी…