पतंग – (लघुकथा)
पतंग – डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार’ “यह हरी पतंग किसकी इतनी ऊँची जा रही है?..ज़रा बताना तो?” नीहार ने अपनी सफ़ेद पतंग ऊपर लहराते हुए पूछ लिया, अपने साथी से,…
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पतंग – डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार’ “यह हरी पतंग किसकी इतनी ऊँची जा रही है?..ज़रा बताना तो?” नीहार ने अपनी सफ़ेद पतंग ऊपर लहराते हुए पूछ लिया, अपने साथी से,…
नई नवेली विधवा – दिव्या माथुर हैनरी विलियम्स का शव काली रौल्स-रॉयस में रखा था; ताबूत पर चम्पा के फूलों से लिखा था ‘माई-डार्लिंग-हब्बी’ और लिलीज़ से गुंधी हुई अन्य…
दिव्या माथुर जैट-एयरवेज़ के हवाई जहाज़ में बैठी थी। उड़ान लन्दन से मुम्बई के लिए रवाना हुई ही थी कि मैंने अपने पीछे से एक विदेशिनी की भारी आवाज़ सुनी।…
मनहूस – दिव्या माथुर पार्क-रौयल अंडरग़्राउंड-स्टेशन के बाहर मुस्कुराता हुआ वह युवक हर रोज़ की तरह आज भी वहाँ खड़ा था। हर सुबह की तरह आज भी उसने अपने हैट…
जंक – दिव्या माथुर कार-बूट-सेल्स में घूम-घूम कर छोटी बड़ी चीज़ें इकट्ठी करने का एक ही तो शौक़ था इन्दिरा का – तस्वीरें, मूर्तियाँ, सिक्के, स्टैम्प्स,, केतलियाँ, मुखौटे, महंगी धातुओं…
3050 – दिव्या माथुर शाम के धुन्धलके में कुछ अधमरे से लोग एक धूसर और ठिगनी मुंडेर के इस ओर खड़े थे। मुंडेर के दूसरी ओर कुछ शिशुओं की लाशें…
चार लघु कथाएं –अंजू मेहता 1. सामान दौड़ते-दौड़ते जल्दी से स्कूल की बस पकड़ी चलती बस में चढ़कर बैठना सचमुच किसी रोमांच से कम नहीं होता है ऐसे में हृदय…
चैतन्य मन – पूजा अनिल सामने वाली शुक्ला आंटी की बेटी को किसी अनजान लड़के के साथ देख कर मन किया कि उन्हें उनकी बेटी के इस छुपे हुए रिश्ते…
दुविधा – पूजा अनिल सुबह से माँ से बात नहीं हो पाई थी उस दिन। प्रकाश ने मोबाइल देखा, दोपहर में माँ ने फ़ोन किया था लेकिन तब वह ऑफिस…
काश! -पूजा अनिल मारीसा किसी तरह उठ कर अपने कमरे से निकल कर किचन की तरफ जाने लगी। पंद्रह कदम का फासला तय करने मे बड़े कष्ट के साथ उसे…
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा की लघु कथाएँ 1. आजादी आजादी के अवसर पर पापा के ऑफिस में स्वतंत्रता–पर्व के साथ एक पारिवारिक मिलन का भी आयोजन किया गया था। पत्नी स्कूल–टीचर…
1. चूड़ियाँ “रुक्मि आज तो चलेगी न” गंगी ने खोली का पर्दा हटाकर पूछा। रात भर की जागी आँखों को उठाकर उसने गंगी की तरफ देखा और धीरे से सर…
1. लघुकथा – ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रूपैया’ पिता के बाद माँ को आधी पेंशन मिलने लगी थी जो एक अच्छी ख़ासी रक़म थी जो युवा बच्चों के वेतन से भी…
बेशर्म –अनु बाफना दुबई शहर का नामी-गिरामी रेस्टोरेंट। शनिवार की शाम व समुद्र किनारे होने से लोगों से खचाखच भरा था। काशवी अपने पति और १५ वर्षीय बेटे के संग…
धनवान -आलोक मिश्रा आलोक जी का जन्म १ दिसंबर १९६५ को कानपुर में हुआ। आलोक जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रायबरेली जिले के एक छोटे से गाँव रंजीतपुर लोनारी में…
सच्चा साथी – अंजू घरभरन विद्या रातभर पढ़ने के बाद पौ फटने पर लेटी थी।आँखे बोझिल और नींद से भारी हो चुकीं थी। मन की चिंता को छुपाते हुए माँ…
ताना-बाना रानी घर के काम निपटा कर बाज़ार की ओर का रुख ले चुकी थी। घर में एक भी सब्ज़ी नहीं थी। जल्दी से घर लौटकर उसे शाम के लिए…
1. समंदर : एक प्रेमकथा “उधर से तेरे दादा निकलते थे और इधर से मैं…” दादी सुनाना शुरू किया। किशोर पौत्री आँखें फाड़कर उसकी ओर देखती रही—एकदम निश्चल; गोया कहानी…
वर्मा जी बहुत परेशान हैं। उनके छठे कहानी संकलन पर एक बड़ी गोष्ठी ज़ूम पर आयोजित की जा रही है और उन्हें यह समझ नहीं आ रहा कि वे कल…
जल्दबाज़ी में यूँही, स्कूटर को आड़ा-टेड़ा खड़ा करके, तेज़ क़दमों से राकेश बढ़ा और सड़क के कोने पर छोटी सी फलों की छबड़ी लगाए लड़के से बोला, “अरे भईया, ज़रा…