ऑनलाइन शिक्षा – (कविता)
ऑनलाइन शिक्षा ऑनलाइन क्लास में पढ़ कर बना डॉक्टरजब यूटूब विडीओ ऑन कर इंजेक्शन की तय्यारी करने लगाहर दो सेकंड में विडीओ रोक कर, निर्देशों को पढ़ने लगातो हमारा पहले…
हिंदी का वैश्विक मंच
ऑनलाइन शिक्षा ऑनलाइन क्लास में पढ़ कर बना डॉक्टरजब यूटूब विडीओ ऑन कर इंजेक्शन की तय्यारी करने लगाहर दो सेकंड में विडीओ रोक कर, निर्देशों को पढ़ने लगातो हमारा पहले…
मुझे गीत से प्रीत नहीं है गा ना सकी तो ये मत कहनामुझे गीत से प्रीत नहीं हैरो ना सकी पर मन की गागरहौले हौले रीत रही हैइतने ज़ख़्म दिए…
पीर बहुत पर नीर नहीं बरसों से सूखी आँखें है, पीर बहुत पर नीर नहींइन आँखों के पथराने में, क्या तुम ने मेरे मुस्काने मेंमहसूस की है कोई नमी कभी…
मतलब बदल गया है तुम वहीमैं वहीहैं भी पर नहींक्यों ?क्योंकि मतलब बदल गया हैमतलब बदल गया हैपाने और खोने कासपने संजोने काअश्कों से रातों कोतकिए भिगोने कासाँसों के संगीत…
छाले चलो छिपा लें दिल के छालेऔरों से भी खुद से भीमाना हम गमगीन बहुत हैंऔर आंसू नमकीन बहुत हैरंगीन तराने चलो सुना लेऔरों से भी खुद से भी चलो…
आँचल जोरो कि बरसती बारिश मेंजब पूरी छत टपकती थीएक खाट पर बैठी माँबच्चो और बक्से के संगपूरी रात सिसकती थीकमरे में बहते पानी मेंकितनी बारिश , कितने आंसूमाँ का…
मन की महाभारत मैं कौरव, मैं पांडव ,मैं अर्जुन मैं दुर्योधनकैसे रोकूँ ये चीरहरण ,हैं पड़े सोच में मनमोहन नारी भिक्षा , नारी कायानारी को धनतुल्य बनायाधर्मराज कर रहे अधर्मकहाँ…
Love Meter का तहलका धुआँधार गालियों की थी बमबारीDialogues (डॉयलॉग) की जारी थी गोलबारीहाथापाई की थी पूरी तय्यारीजब बीच बचाव करने पहुँचीदोनो की मय्या प्यारीअचानक तोपों का रूख बदल गयासारा…
जल रही हूँ तप रही हूँ, जल रही हूँरूह तक पिघल रही हूँ सागर की अनगिनत नदियाँनदी का बस इक समंदर,यही है मेरा मुक़द्दरइसी जल में जल रही हूँ ।…
घर घर तो पहले हुआ करते थेअब तो बस पत्थरों के मकान रह गए हैं एक अकेले कमरे में जहाँना तेरा था ना मेरा थासब कुछ जिसमें अपना थावो प्यारा…
माँ अगर मैं जयचंद होता नितीन उपाध्ये मोनू की दादी के गाँव से शहर आने की ख़ुशी जितनी मोनू को नहीं होती थी उससे ज्यादा उसके आसपास रहने वाले विक्की,…
डॉ. मधु संधु की लघु कथाओं में स्त्री पात्रों की सामाजिक विडम्बनाओं के प्रति सरोकार डॉ. नितीन उपाध्ये, यूनिवर्सिटी ऑफ़ मॉडर्न साइंसेज, दुबई साहित्य समाज का दर्पण होता है। समाज…
‘आत्मनिर्भर भारत’ : कितना ज़रूरी और कितना सफल नितीन उपाध्ये “आत्मनिर्भर” मेरे विचार में आज किसी भी व्यक्ति/परिवार/शहर/राज्य/देश का पूर्णरूपेण आत्मनिर्भर होना सरल नहीं है। अब मैं स्वयं का ही…
सोशल मीडिया : क्या खोया, क्या पाया नितीन उपाध्ये सोशल मीडिया से हमने जो पाया है वह है “दुनिया के किसी भी कोने में जब एक गौरेय्या अपने पंख फड़फड़ाती…
क्या हम केचुएं है ? नितीन उपाध्ये आज परसाईयत में श्रद्धेय श्री हरिशंकर परसाई जी का व्यंग्य लेख “केचुवां” पढ़ा। मन में कई ख्याल आये सब एक दूसरे के ऊपर…
1. चूड़ियाँ “रुक्मि आज तो चलेगी न” गंगी ने खोली का पर्दा हटाकर पूछा। रात भर की जागी आँखों को उठाकर उसने गंगी की तरफ देखा और धीरे से सर…
मोटी सुई नितीन उपाध्ये आज शाम से ही गोलू की बेचैनी देखने लायक थी। आज उसने अम्मा से कुछ खाने के लिए भी गुहार नहीं लगाई। वह तो अम्मा ने…
गंगासागर नितीन उपाध्ये आज जब से डाकिया जान्हवी दीदी की चिट्ठी दे कर गया है, सारे घर का वातावरण ही बदल गया है। अम्मा तो रसोईघर में जाकर सुबह से…
दाई मां नितीन उपाध्ये भारत के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने जब आजादी के गुमनाम नायकों को उचित सम्मान देकर उनकी वीर गाथा आज की पीढ़ी को बताने की…
ज़िंदगी की दौड़ झुरमुट की ओट में खड़े होकरआँखें बंद करने सेरात नहीं होतीऔर न हीबिजली के बल्ब के सामने खड़े होकरदिन की अनुभूति होती हैदोनों ही नकारात्मक सत्य है।…