Category: प्रवासी साहित्य

जापानी विद्यालयों से जीवन मूल्यों की सीख – (आलेख)

जापानी विद्यालयों से जीवन मूल्यों की सीख – डॉ अर्चना पांडेय, जापान वर्ष 2013 में टोक्यो के एक अंतरराष्ट्रीय विद्यालय में हिंदी सेकेंड लैंग्वेज शिक्षिका के रूप में मेरी नई…

ब्रिटेन के प्रवासी हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण अध्याय का अंत – (संस्मरण)

ब्रिटेन के प्रवासी हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण अध्याय का अंत –तरुण कुमार ब्रिटेन में हिंदी भाषा की समर्पित सेविका और साहित्य की प्रतिष्ठित रचनाकार जय वर्मा का 22 अप्रैल…

गंध – स्पर्श – (कविता)

डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव, ब्रिटेन ***** गंध – स्पर्श यह फूलअपनी सुगंध कोकुछ देर पहले तकपत्तियों में बांधे हुए था स्निग्ध हवा का एक झोंका आयाअब पत्तियां झर रही हैंऔर खुशबू…

यह शहर : लन्दन – (कविता)

डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव, ब्रिटेन ***** यह शहर : लन्दन यह शहर उग रहा अब सेवार सा चारों तरफइस शहर की भीड़ में हर जन कहीं भटका हुआस्वप्न की इन फाइलों…

धुंए भरे कमरे में – (कविता)

डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव, ब्रिटेन ***** धुंए भरे कमरे में उस धुंए भरे कमरे मेंबहुत लोग नहीं थेलेकिन जो थेवे अपनी उपस्थिति के प्रतिनिरंतर चौकन्ने थेउनकी आंखों में जो परेशानी थीवह…

वह लड़की – (कविता)

डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव, ब्रिटेन ***** वह लड़की एक छोटी-सी लड़की थी वहकोई आठ वर्ष कीएक पवित्र जल-धार की खामोश थिरकन लहर कीजब उसकी आंखों मेंउसके पार मैंने उसे देखा थाएक…

संकल्प – (कविता)

डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव, ब्रिटेन ***** संकल्प मैं देखता हूं उन्हेंगाते हुए प्रेम-गानअपनी बाहों पर गुदे गुदने को देखकरवे कितने सारे नाम उन परवे कैथरिनें, वे एलिजाबेथेंवे डायनाएं और वे मार्गरटेंफिर…

माइकल एंजेलो – (कविता)

डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव, ब्रिटेन *** माइकल एंजेलो ठुमक रही है संगमरमरी शीशों परमैं देख रहा हूंइन पत्थरों पर पड़ती रोशनी की झांइयों मेंतुम्हारी कलाई का स्वप्न-नृत्यऔर मैं कल्पना कर रहा…

बार बार भारत – (कविता)

डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव, ब्रिटेन ***** बार बार भारत विद्यार्थी कहते थे-वे भारत देश जा रहे हैंवे भारत देश केवल कुछ पढ़ने-घूमने देखने हीनहीं जा रहे हैंजा रहे हैं वहां वह…

खिड़की के सामने का पेड़ – (कविता)

डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव, ब्रिटेन *** खिड़की के सामने का पेड़ मेरी खिड़की के सामने का यह पेड़सब ऋतुओं में बदला है, परइसे इंसान की तरह मौसमी नहीं कहा जा सकता…

सर विंस्टन चर्चिल मेरी मां को जानते थे – (कविता)

डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव, ब्रिटेन *** सर विंस्टन चर्चिल मेरी मां को जानते थे सर विंस्टन चर्चिल जानते थे कि भारत क्या है।वे जानते थेक्योंकि वे मानते थे कि भारत ब्रिटिश-साम्राज्य…

जय वर्मा के कहानी संग्रह ‘सात कदम’ की अनीता वर्मा की समीक्षा – (यू-ट्यूब)

https://www.youtube.com/watch?v=TJ4g3gAGCEA

चेतावनी – (कविता)

बृजेंद्र कुमार भगत ‘मधुकर’ (राष्ट्रकवि), मॉरीशस चेतावनी हिंदी गई रसातल में तो गई हमारी आशा,संस्कृति सिसक-सिसक रोएगी धर्म मरेगा प्यासा।हिंदी को कुचलेगी प्यारे गौरांगों की भाषा,हिंदू एक न होगा जग…

आदमी और कबूतर – (कविता)

अमरेन्द्र कुमार, अमेरिका आदमी और कबूतर (१) नाम देकरसभ्यता का विकासछीन करधरती और आकाशबनाये जा रहेकंक्रीट के दरबेतैयारी हो चुकी है पूरीआदमी को कबूतर बनाने की (२) कबूतरशांति का प्रतीक…

पावस – (कविता)

अमरेन्द्र कुमार, अमेरिका पावस (१) जाते-जातेसावन डाकिये नेबचे बादलों के बण्डल कोबढ़ा दिया भादों कोताकि धरती परजल का वितरणहोता रहे निरंतर-निर्बाध| (२) सूरज साहब के नामधूप की छुट्टियों की अर्जीबंद…

समय सबसे बड़ा छन्ना – (कविता)

अमरेन्द्र कुमार, अमेरिका समय सबसे बड़ा छन्ना समय सबसे बड़ा छन्नाठोस रह जाता हैतरल बह जाता है. मौन सबसे बड़ा संवादकोलाहल से आगेअनकहा कह जाता है. दुर्ग हो असत्य काचाहे…

आत्मा की अदालत – (कविता)

अमरेन्द्र कुमार, अमेरिका आत्मा की अदालत ईमान के लिए अगरबिगाड़ की बात करोगे?अपनी बर्बादी का गड्ढाक्या खुद खोदोगे? किसी का कुछ जायेगा नहींअपना नुकसान आप भरोगे अलगू चौधरी के कामजुम्मन…

एक दिन सुबह – (कहानी)

एक दिन सुबह अमरेन्द्र कुमार, अमेरिका अपनी नौकरी से रिटायर होने के बाद एक एकदम नये और अंजाने शहर में बसने का फैसला मेरा ही था। फैसलों में किसी की…

विपक्ष की कलम से – (व्यंग्य)

विपक्ष की कलम से – अमरेन्द्र कुमार, अमेरिका आज तक आपने सरकार की बातें ही सुनी हैं। आज मैं विपक्ष आपसे इस लेख के माध्यम से कुछ साझा करना चाहता…

अमरेन्द्र कुमार की ग़ज़लें – (ग़ज़ल)

अमरेन्द्र कुमार, अमेरिका ग़ज़ल -1 सब दिन ही मालिक केसब दिन ही हैं अच्छे। तम के झोंके सहतेतन के ये घर कच्चे। हम भी अब हो जाएबच्चे मन के सच्चे।…

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