नीचता अब नीति है, ऊंचाई अब गिरावट से नापी जाती है – (व्यंग्य)
नीचता अब नीति है, ऊंचाई अब गिरावट से नापी जाती है – डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ सुबह का वक्त था, मगर मोहल्ले में अंधेरा छाया हुआ था। अंधेरा बिजली…
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नीचता अब नीति है, ऊंचाई अब गिरावट से नापी जाती है – डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ सुबह का वक्त था, मगर मोहल्ले में अंधेरा छाया हुआ था। अंधेरा बिजली…
कुबेरनाथ राय – नर्मदा प्रसाद उपाध्याय 26 मार्च 1933 को उत्तर प्रदेश जिले के मतसा ग्राम में माता श्रीमती लक्ष्मी देवी व पिता श्री वैकुण्ठ राय के यहां जन्मे श्री…
‘गिरमिटिया जीवन’ और मेरी कविताएँ – डॉ. दीप्ति अग्रवाल कविता कविता वक्तव्य नहीं गवाह है कभी हमारे सामने कभी हमसे पहले कभी हमारे बाद कोई चाहे तो भी रोक नहीं…
– विनोद पाराशर तुम्हारी नज़र में तुम्हारी नज़र मेंजो मैं हूँवो मैं नहीं हूँ।जो मैं नहीं हूँदरअसल-मैं वही हूँ।मेरा-मुस्कराता चेहरा-शानदार पोशाक-चमचमाते जूतेदेखकर-जो तुम समझ रहो होवो मैं नहीं हूँ।जो मैं…
– विनोद पाराशर खूबसूरत कविता! मैं /जब भीलिखना चाहता हूंकोई खूबसूरत कविता!अभावों की कैचीकतर देती हैमेरे आदर्शों के पंख!कानों में-गूंजती हैं-आतंकित आवाजेंन अजान,न शंख! मैं/जब भीलिखना चाहता हूंकोई खूबसूरत कविताभ्रष्टाचारी…
– विनोद पाराशर सुख और दुःख! हम-यह जानकरबहुत सुखी हैंकि-दुनिया के ज्यादातर लोगहमसे भी ज्यादा दु:खी हैं!पिता-इसलिए दु:खी है-कि बेटा कहना नहीं मानताबेटे का दु:ख-कैसा बाप है!बेटे के जज्बात ही…
– विनोद पाराशर स्त्री की पहचान! जब वहपैदा हुईतो बनीकिसी की बेटीकिसी की बहनबढ़ती रहीखर-पतवार-सीकरती रहीसब-कुछ सहन।जवान हुईबन गयीकिसी की पत्नीकिसी की भाभीतो किसी की पुत्र-वधु!विष पीकर भी-घोलतीं रहीओरों के…
साहित्यसेतू : मराठी संतों की हिंदी यात्रा ~ विजय नगरकर, अहिल्यानगर, महाराष्ट्र खंड 1: प्रस्तावना एवं लेखक का परिचय “साहित्यसेतू” ( – पृष्ठ 1) डॉ. श्रीधर रंगनाथ कुलकर्णी ( –…
– कृष्णा कुमार ज़िन्दगी ज़िन्दगी की अस्थिरता ने,हमें बहुत कुछ सिखाया हैअब तो लगता है जैसे,इसी का नाम है ज़िन्दगी। इस उथल-पुथल में,कुछ बहुत पास आ जाते है,कुछ दिखाई तो…
– कृष्णा कुमार लो वसंत रितु आई लो वसंत रितु आई -२ पेड़ों पे कोंपल मुसकाई -२सूरज की मीठी धूप पाकरकलियों ने ली अँगड़ाई लो वसंत रितु आई-२ इंद्रधनुष सा…
…तो अच्छा होता – कृष्णा कुमार हमें अजनबी ही रहने दिये होते, तो अच्छा होता,जानकर,अनजान ना बने होते, तो अच्छा होता। ख़ुशियों की उम्मीद ना होतीगुज़रे पलों की याद ना…
बढ़ते कदम – कृष्णा कुमार आज झरोंखों के पार देखाआज दिल को समझायाचल उठ, उठकर, कुछ क़दम तो बढ़ाक्या पता उसपार, इसपार से कुछ ज़्यादा हो,नीले आसमाँ के अलावा कुछ…
असहाय लोग – कृष्णा कुमार एक पाँच साल की बच्ची,और उसकी तीन साल की बहन,उचक उचक के चलते पाँव,क्या हज़ार किलोमीटर चल पाएँगे?नंगे पॉंव पे छाले कहाँ तक ले जाएगें?एक…
कविता – कृष्णा कुमार लिखने बैठी हूँ कविता,कविता ये क्या है ?ये हक़ीक़ते बयाँ है क्या ? जिसे कहना बहुत मुश्किल हो,लफ़्ज़ों से खेलना जिसकी फ़ितरत हो,कई प्रकार की कल्पना…
दूरदर्शन – अमरनाथ ‘अमर’ तब दूरदर्शन केंद्र मंडी हाउस में न होकर संसद मार्ग स्थित आकाशवाणी भवन में था। आकाशवाणी भवन में आकाशवाणी का महानिदेशालय था (अभी भी है) उसकी…
© विनयशील चतुर्वेदी ग़ज़ल युँ ढल कर शाम का सूरज सुबह ऐसे निकलता है।किसी दुल्हन की घूंघट से वदन जैसे झलकता है मुहल्ला आशिक़ों का है यहाँ आना बहुत धीमेकिसी…
© विनयशील चतुर्वेदी ग़ज़ल आँखों में ज़रूरी है ग़ैरत औ हया होना।।वादों में ज़रूरी है इक अहले वफ़ा होना।। तुम प्यार के खेतों में बारूद उगाते होतुम भूल गए शायद…
अनुभौ उतरयो पार! डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम कबीर का जीवन ही दर्शन पर आधारित था। उन्होंने जो देखा, उसी को कहा। किसी किताब-विताब के चक़्कर में नहीं रहे। कहते हैं,…
डिजिटल हिन्दी की यात्रा भूमंडलीकरण ने हमारे सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन के साथ-साथ भारतीय भाषाओं को भी काफी प्रभावित किया है। आज के यांत्रिक युग में भाषा का प्रयोग केवल…
© विनयशील चतुर्वेदी ग़ज़ल रहते हैं किस तौर यहाँ पर हाल न पूछोमिलती है किस भाव यहाँ पर दाल न पूछो आत्महत्या पर खेतिहर की भी साहब जीहंसते हैं कि…